भ्रष्टाचार ही नहीं, खुशामद या चापलूसी है एक बुराई
जबकि पैसे के भ्रष्टाचार को लेकर काफी बहस होती रही है इस बुराई के एक दूसरे रूप की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया जाता और जो बहुत ज्यादा फैली हुई है जिसका नाम खुशामद या चापलूसी है। यह कई तरह की होती है लेकिन इसका मकसद एक ही होता है कि अपने आप को आगे बढ़ाना। सबसे पहले खुशामद तारीफ करके की जाती है। मुझे इंग्लैंड में कई जगहों पर भारतीय विद्यार्थियों की कुछ बैठकों की याद है जिसमें प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने भाषण दिया था। भाषण के अंत में एक लड़की बुलंद आवाज में चिल्लाती थी ‘तुम जियो हजारों साल साल के दिन हो पचास हजार। ‘पंडित जी जोकि अपने देशवासियों से जल्दी नाराज हो जाते थे इस बात से बहुत खुश होते थे। लंदन में जब मैं हाई कमिश्नर कृष्णा मेनन का प्रेस अटेची था तो मैंने एक पंजाबी आईसीएस आर्थर लाल में खुशामद का सबसे बुलंद उदाहरण देखा। वह मुश्किल से पंजाबी बोल पाते थे लेकिन अंग्रेजी धाराप्रवाह बोलते थे। मैंने उन्हें कृष्णा मेनन से कहते सुना ‘आपके पास स्टालिन से बड़ा दिमाग है।‘ मैंने सोचा कि मेनन उन्हें छिड़केंगे, इसके बजाय आर्थर उनके मनपसंद मातहत बन गए। उन्होंने अपने नाम से आर्थर को हटाकर आनंद शंकर लाल कहलाना शुरू कर दिया। वह मेनन के सबसे नजदीकी बन गए। मेनन ने उनके नाम की संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव के लिए सिफारिश की। अमेरिका जिसने इस पद के लिए बीके नेहरू को स्वीकृति दे दी थी, उन्होंने एएस लाल के नाम का समर्थन करने से इंकार कर दिया। इस तरह एक भारतीय का यूएन का महासचिव बनने का मौका हाथ से निकल गया। खुशामद का एक दूसरा रूप यह है कि अपने पसंदीदा दुश्मन का नाम पहले तो खूब आगे बढ़ाओ और फिर उसे नीचे गिरा दो। उन्होंने सरदार पटेल को नेहरू का प्रमुख राजनीतिक विरोधी बनाने का सोचा और फिर नेहरू की तरफदारी हासिल करने के लिए उन्हें नीचे गिरा दिया। इस तरह पैटेलाइट शब्द नेहरू की खिलाफत करने वालों के लिए गढ़ा गया। इस तरह की खुशामद के बहुत अच्छे नतीजे निकले। नेहरूवादी लोग तरक्की पसंद लिबरल गिने जाने लगे। पैटेलाइट पीछे देखने वाले माने गए। हालांकि इसमें कोई पैसा खर्च नहीं किया गया, लेकिन मतलब को अच्छी तरह साध लिया गया। नाम लेनाः जैसे ही खबर फैली कि मैं बाहर निकलने वाला हूं कुछ जान-पहचान वाले मुझसे हैलो गुडबाई विजिट की तरह मिलने आए। उनमें प्रधानमंत्री की पत्नी गुरशरण कौर भी थीं। वह अपने ही ढंग की वीआईपी हैं जो देश के शासक की पत्नी के कर्तव्यों का निर्वाह करती हैं। मैं सोचता था कि वह बहुत ही कोमल व्यक्ति हैं जिन्होंने अपने पति के लिए दाल रोटी बनाने में जीवन लगा दिया, वह जहां कहां भी हों वाशिंगटन, न्यूयार्क, मुम्बई और दिल्ली। जब उन्होंने मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर मेरा अभिवादन किया तो मुझे पहला आश्चर्य हुआ। यह एक पहलवान की मजबूत पकड़ थी। मैंने अपना आश्चर्य व्यक्त किया ‘आप तो मजबूत हैं‘ (यू आर टफी)। उन्होंने मेरी बात से सहमति जताई ‘हां मैं टफी हूं।‘ मैंने उनके पति की सेहत के बारे में अपना पुराना सवाल पूछा कि वह कितनी देर सोते हैं। उन्होंने जवाब दिया ‘रात को लगभग 5 घंटे, वह दिन में नहीं सोते।‘ मैंने दूसरा सवाल किया ‘क्या उन्हें कभी गुस्सा आता है?‘ उन्होंने सिर हिलाकर जवाब दिया ‘वह इसे अंदर रखते हैं और कभी उसके साथ बाहर नहीं निकलते।‘उसके बाद हमारी आपस में देश के हालात और राजनीतिज्ञों के बारे में काफी बातचीत हुई। वह अपने जवाब में बहुत स्पष्ट थीं लेकिन शब्दों को बड़ी सावधानी से बोल रही थीं। उन्होंने हमारी बातचीत का अंत मेरा आशीर्वाद लेने के लिए मस्तक झुकाकर किया। मैंने उनके सफद बालों पर हाथ रखा और उनके लंबे स्वस्थ जीवन की कामना की। वह मुझसे 30 साल से ज्यादा छोटी होंगी। उनके जाने पर मुझे अपने अंदर बहुत संतुष्टि का अनुभव हुआ।
source : prabhasakshi
No comments:
Post a Comment