Monday, 27 April 2015

जीएसटी को फिर विवाद में न घसीटें पार्टियां

जीएसटी को फिर विवाद में न घसीटें पार्टियां


लोकसभा में विचित्र नज़ारा था। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने वस्तु एवं सेवा कर ;जीएसटीद्ध विधेयक पेश किया तो अनेक विपक्षी दल अड़ गए कि बिल को संसदीय समिति के पास भेजा जाए। तब जेटली ने कांग्रेस को याद दिलाया कि यह उसके नेतृत्व वाली सरकार का ही बनाया हुआ बिल है। सोनिया गांधी ने इसके जवाब में जेटली को याद दिलाया कि तब भाजपा ने उसका विरोध किया था। इसके बाद कांग्रेसए सपाए तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के सदस्य वॉक आउट कर गए।
यह घटनाक्रम उल्लेखनीय है क्योंकि जीएसटी को लागू करने के लिए संविधान संशोधन की जरूरत है। फिर इसकी सफलता केंद्र और राज्यों के बीच सहयोग पर निर्भर है। यानी जीएसटी राजनीतिक दायरे में व्यापक सहमति के बिना लागू नहीं हो सकता। मगर सहमति कैसे बनेगीए जब सियासी पार्टियों का रुख किसी कदम के गुण.दोष पर नहींए बल्कि उनके सत्ता अथवा विपक्ष में होने से तय होता हैघ् जानकारों का कहना है कि जीएसटी के लागू होने मात्र से सकल घरेलू उत्पाद में डेढ़ से दो फीसदी की बढ़ोतरी होगी। कर प्रणाली आसान होगी और उद्योग जगत को भी सहूलियत होगी। चूंकि उत्पाद करए सेवा करए केंद्रीय बिक्री करए वैटए एंट्री टैक्सए लग्ज़री टैक्सए मनोरंजन कर आदि जैसे तमाम परोक्ष कर इसमें समाहित हो जाएंगेए अतः सारे देश में टैक्स का समान ढांचा लागू होगा। इससे पूरा भारत समरूप बाजार बन सकेगा। इसीलिए उद्योग और कारोबार जगत ने इससे ऊंची उम्मीदें जोड़ी हैं। हर राज्य में टैक्स का एक जैसा सिस्टम होने से करों को लेकर निश्चितता कायम होगी।
माना जाता है कि इससे कर वसूली भी आसान होगीए जिससे राजकोष की सेहत सुधरेगी। कुछ महीने पहले खबर आई थी कि राजस्व संबंधी राज्यों की चिंताओं का समाधान हो गया है। तब लगा था पांच वर्ष से लटकी जीएसटी व्यवस्था का रास्ता साफ हो गया है। मगर शुक्रवार को यह उम्मीद कमजोर हुई। ध्यानार्थ है कि विधेयक का पास होना जीएसटी पर अमल की दिशा में सिर्फ एक कदम है। उसके बाद भी अमल के नियम और तौर.तरीके निर्धारित करने की चुनौती बनी रहेगी। बहरहालए राजनीतिक दलों में मतभेद बने रहे तो पहला कदम ही नहीं उठेगा। अतः बेहतर होगा कि पार्टियां अपने स्वार्थ पर राष्ट्र.हित को तरजीह दें। वे जीएसटी को फिर से विवाद में न घसीटें।

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