दर्शक और विज्ञापनदाता दोनों के अनुकूल डिजिटल मीडिया
इन दिनों अमेरिकी टेलीविजन बाजार में बड़ी उठापटक चल रही है। केबल टीवी या डीटीएच की पारंपरिक सेवाएँ बहुत महंगी हैं। नील्सन के एक सर्वे के मुताबिक आम अमेरिकी घर में औसतन 189 टेलीविजन चैनल उपलब्ध हैं जबकि वह उनमें से सिर्फ 17 को देखता है। यानी लगभग 90 फीसदी चैनलों के लिए दर्शक बेवजह भुगतान करता है। वक्त की कमी के साथ-साथ महंगे डीटीएच प्लान लोगों को केबल कनेक्शन छोड़ने पर मजबूर कर रहे हैं। इनके जवाब में इंटरनेट आधारित टेलीविजन स्ट्रीमिंग सेवाएँ लोकप्रिय हो रही हैं। वहाँ डिश टीवी की Sling TV नामक सर्विस ऐसी ही है जिसमें सिर्फ 20 चैनल उपलब्ध कराए जाते हैं और उपभोक्ता का खर्च एक चौथाई से भी कम रह जाता है। कल की खबर है कि एपल भी इस क्षेत्र में प्रवेश करने ज रहा है। उसका एपल टीवी और गूगल का गूगल टीवी इस तरह के कन्टेन्ट की इंटरनेट के माध्यम से डिलीवरी करने में सक्षम है। इस बात का जिक्र करना ज़रूरी है कि भारत में भी डिश टीवी और टाटा स्काई ने टीवी देखने के लिए एप्प जारी किए हैं लेकिन ये उन्हीं लोगों को उपलब्ध हैं जिनके पास अपने टेलीविजन के लिए बुनियादी डीटीएच कनेक्शन पहले से मौजूद है।
एक्सपेरियन मार्केटिंग सर्विसेज की एक रिपोर्ट के मुताबिक सन् 2010 में अमेरिका में 51 लाख लोगों ने केबल कनेक्शन छोड़ दिए थे। इसके तीन साल बाद का आंकड़ा है- 76 लाख। यानी पारंपरिक टेलीविजन को अलविदा करने वालों की संख्या हर तीन साल में 44 फीसदी की रफ्तार से बढ़ रही है। आप खुद सोच लीजिए कि वैश्विक स्तर पर हालात किस दिशा में जा रहे हैं?
तकनीकी माध्यम सिर्फ दर्शकों को ही आकर्षित नहीं कर रहे, वे वहाँ चोट कर रहे हैं जहाँ दर्द ज्यादा होता है, यानी विज्ञापन। डिजिटल मीडिया ने प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के विज्ञापनों से एक बड़ा टुकड़ा काट लिया है।
मैं यह नहीं कहता कि टेलीविजन के लिए अस्तित्व के संकट जैसी कोई चीज़ आने वाली है लेकिन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का कारोबार गंभीर रूप से प्रभावित हो सकता है। तकनीकी माध्यम सिर्फ दर्शकों को ही आकर्षित नहीं कर रहे, वे वहाँ चोट कर रहे हैं जहाँ दर्द ज्यादा होता है, यानी विज्ञापन। डिजिटल मीडिया ने प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के विज्ञापनों से एक बड़ा टुकड़ा काट लिया है। डिजिटल मीडिया का विज्ञापन मॉडल बहुत इनोवेटिव है और सच कहा जाए तो उसमें दर्शकों और विज्ञापनदाताओं दोनों का लाभ है।
इस मॉडल को समझने की कोशिश करते हैं। आप जानते हैं कि इंटरनेट से जुड़े हर कंप्यूटर या गैजेट की एक विशिष्ट पहचान होती है। इसे आईपी एड्रेस कहते हैं। इसी की बदौलत, किसी वेबसाइट पर कौन व्यक्ति किस जगह से विजिट कर रहा है, इसे जानना बहुत आसान है। दूसरे Big Data जैसी आधुनिक तकनीकें ऑनलाइन Users का और भी बहुत सारा ब्यौरा हासिल करने में सक्षम हैं, जैसे उनकी उम्र, पसंद-नापसंद, आय, लिंग आदि। ऑनलाइन विज्ञापनों को किसी खास वर्ग के दर्शकों की तरफ Target किया जा सकता है, जो टेलीविजन या अखबार के मामले में संभव नहीं है। इसमें विज्ञापनदाता का लाभ है क्योंकि उसे खास उन्हीं व्यक्तियों तक पहुँचने की सुविधा मिल जाती है, जिन्हें वह लक्ष्य बनाकर चल रहा है। मिसाल के तौर पर गोरेपन की क्रीम का विज्ञापन देने वाली कंपनी यह चाहेगी कि उसके विज्ञापन सिर्फ 30 साल से कम उम्र की युवतियों को ही दिखाए जाएँ। विज्ञापन वितरित करने वाला प्लेटफॉर्म यह सुनिश्चित कर सकता है कि यह विज्ञापन सिर्फ इसी वर्ग के दर्शकों को दिखाई दे, दूसरों को नहीं।
अब यू-ट्यूब का उदाहरण देखिए। वहाँ पर वीडियो के पहले विज्ञापन दिखाए जाते हैं लेकिन आपको यह तय करने की आजादी है कि आप किसी विज्ञापन को पूरा देखना चाहते हैं या पाँच सैकंड की अवधि के बाद उसे बंद कर मूल वीडियो पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं। विज्ञापन दर्शक के काम का है तभी वह उसे देखेगा, अन्यथा आगे बढ़ जाएगा। यहाँ विज्ञापनदाता को तसल्ली है कि उसका विज्ञापन सिर्फ उन्हीं लोगों ने देखा जो उसका उत्पाद खरीदने में दिलचस्पी रखते हैं। उसे खर्चा भी सिर्फ उतने ही विज्ञापनों के लिए देना पड़ा। अगर यही विज्ञापन टेलीविजन पर आता तो भले ही कोई उसे देखे या नहीं, विज्ञापन की दर में कोई अंतर आने वाला नहीं था। दर्शक भी विज्ञापनों की झड़ी का शिकार होने के लिए अभिशप्त नहीं है, क्योंकि उसके पास चुनने की आजादी है।
prabhasakshi
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