राहुल के तेवर
लगभग दो माह की छुट्टियां मनाकर लौटे कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने रविवार को दिल्ली में आयोजित किसान खेत मजदूर रैली में नरेंद्र मोदी सरकार पर जैसे तीखे प्रहार कियेए वे अनपेक्षित नहीं थे। पिछले साल लोकसभा चुनाव में ऐतिहासिक पराजय के बाद से ही लगातार चुनावी हार के झटके झेल रही कांग्रेस मोदी सरकार के भूमि अधिग्रहण कानून में अपने पुनरुत्थान की राह ढंूढ़ रही है। पूर्ववर्ती संप्रग सरकार के समय बने भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन की उतावली में मोदी सरकार जिस तरह दो बार अध्यादेश जारी कर चुकी है और कमोबेश पूरा विपक्ष ही नहींए बल्कि किसान संगठन भी इसके विरोध में मुखर हैंए उससे लगता भी है कि यह मुद्दा सरकार के लिए अग्निपरीक्षा साबित हो सकता है। फिर भी महज एक मुद्दे पर रैली के सहारे कांग्रेस का हताशा के गहरे गर्त से निकल पाना आसान नहीं होगा। इसलिए भी कि कांग्रेस की चुनौतियां सिर्फ बाहरी नहींए आंतरिक भी हैं। लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद से ही पार्टी में कई तरह के स्वर मुखर हो रहे हैं। राहुल गांधी की ताजपोशी के नाम पर तो कांग्रेस में साफ.साफ दो धड़े ही नजर आ रहे हैं। यंग ब्रिगेड माने जाने वाले नेता जल्द से जल्द राहुल को अध्यक्ष बनाने की मांग कर रहे हैंए तो शीला दीक्षित से लेकर कैप्टन अमरेंद्र सिंह तक अनेक वरिष्ठ नेता अभी सोनिया के ही कमान संभाले रहने के पक्षधर हैं।
देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस में धड़ेबंदी नयी बात नहीं हैए लेकिन शीर्ष नेतृत्वए वह भी नेहरू परिवार के ही सदस्यों को लेकरए ऐसा पहली बार देखा जा रहा है। यही कारण है कि संसद का बजट सत्र शुरू होते ही राहुल के लंबी छुट्टी पर चले जाने को भी इस धड़ेबंदी के विरोध तथा खुली छूट के लिए दबाव से जोड़कर देखा गया। कथित रूप से उद्योगपति परस्त मोदी सरकार से किसान हितों की रक्षा के संघर्ष के ऐलान के लिए आयोजित कांग्रेस की किसान खेत मजदूर रैली में भी यह धड़ेबंदी साफ नजर आयी। सोनिया के करीबी माने जाने वाले जनार्दन द्विवेदीए अहमद पटेलए अंबिका सोनीए शीला दीक्षितए कैप्टन अमरेंद्र सिंह और वीरभद्र सिंह सरीखे नेताओं को मंच पर भी जगह नहीं दी गयीए जबकि राहुल राग अलापने वाले अजय माकनए प्रताप सिंह बाजवा और सुनील जाखड़ आदि मंच पर छाये रहे। कहना नहीं होगा कि इस रैली के जरिये कांग्रेस किसानों से एकजुटता का संदेश भले ही देना चाहती होए पर खुद अपनी एकता का संदेश देने में विफल रही है। इसलिए रैली से चंद दिन पहले ही 56 दिन की छुट्टी मनाकर लौटे राहुल गांधी के लिए भी आगे की राह आसान हरगिज नहीं होगी। उन्हें न सिर्फ कांग्रेस के अंदर अपनी प्रतिभा.क्षमता पर शक करने वालों से जूझना होगाए बल्कि मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में एक हुए जनता परिवार तथा नये माकपा महासचिव सीताराम येचुरी के नेतृत्व में नये उत्साह से सक्रिय हो सकने वाले वाम मोर्चा के बीच अपनी पार्टी की प्रासंगिकता और बढ़त भी साबित करनी होगी।
लगभग दो माह की छुट्टियां मनाकर लौटे कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने रविवार को दिल्ली में आयोजित किसान खेत मजदूर रैली में नरेंद्र मोदी सरकार पर जैसे तीखे प्रहार कियेए वे अनपेक्षित नहीं थे। पिछले साल लोकसभा चुनाव में ऐतिहासिक पराजय के बाद से ही लगातार चुनावी हार के झटके झेल रही कांग्रेस मोदी सरकार के भूमि अधिग्रहण कानून में अपने पुनरुत्थान की राह ढंूढ़ रही है। पूर्ववर्ती संप्रग सरकार के समय बने भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन की उतावली में मोदी सरकार जिस तरह दो बार अध्यादेश जारी कर चुकी है और कमोबेश पूरा विपक्ष ही नहींए बल्कि किसान संगठन भी इसके विरोध में मुखर हैंए उससे लगता भी है कि यह मुद्दा सरकार के लिए अग्निपरीक्षा साबित हो सकता है। फिर भी महज एक मुद्दे पर रैली के सहारे कांग्रेस का हताशा के गहरे गर्त से निकल पाना आसान नहीं होगा। इसलिए भी कि कांग्रेस की चुनौतियां सिर्फ बाहरी नहींए आंतरिक भी हैं। लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद से ही पार्टी में कई तरह के स्वर मुखर हो रहे हैं। राहुल गांधी की ताजपोशी के नाम पर तो कांग्रेस में साफ.साफ दो धड़े ही नजर आ रहे हैं। यंग ब्रिगेड माने जाने वाले नेता जल्द से जल्द राहुल को अध्यक्ष बनाने की मांग कर रहे हैंए तो शीला दीक्षित से लेकर कैप्टन अमरेंद्र सिंह तक अनेक वरिष्ठ नेता अभी सोनिया के ही कमान संभाले रहने के पक्षधर हैं।
देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस में धड़ेबंदी नयी बात नहीं हैए लेकिन शीर्ष नेतृत्वए वह भी नेहरू परिवार के ही सदस्यों को लेकरए ऐसा पहली बार देखा जा रहा है। यही कारण है कि संसद का बजट सत्र शुरू होते ही राहुल के लंबी छुट्टी पर चले जाने को भी इस धड़ेबंदी के विरोध तथा खुली छूट के लिए दबाव से जोड़कर देखा गया। कथित रूप से उद्योगपति परस्त मोदी सरकार से किसान हितों की रक्षा के संघर्ष के ऐलान के लिए आयोजित कांग्रेस की किसान खेत मजदूर रैली में भी यह धड़ेबंदी साफ नजर आयी। सोनिया के करीबी माने जाने वाले जनार्दन द्विवेदीए अहमद पटेलए अंबिका सोनीए शीला दीक्षितए कैप्टन अमरेंद्र सिंह और वीरभद्र सिंह सरीखे नेताओं को मंच पर भी जगह नहीं दी गयीए जबकि राहुल राग अलापने वाले अजय माकनए प्रताप सिंह बाजवा और सुनील जाखड़ आदि मंच पर छाये रहे। कहना नहीं होगा कि इस रैली के जरिये कांग्रेस किसानों से एकजुटता का संदेश भले ही देना चाहती होए पर खुद अपनी एकता का संदेश देने में विफल रही है। इसलिए रैली से चंद दिन पहले ही 56 दिन की छुट्टी मनाकर लौटे राहुल गांधी के लिए भी आगे की राह आसान हरगिज नहीं होगी। उन्हें न सिर्फ कांग्रेस के अंदर अपनी प्रतिभा.क्षमता पर शक करने वालों से जूझना होगाए बल्कि मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में एक हुए जनता परिवार तथा नये माकपा महासचिव सीताराम येचुरी के नेतृत्व में नये उत्साह से सक्रिय हो सकने वाले वाम मोर्चा के बीच अपनी पार्टी की प्रासंगिकता और बढ़त भी साबित करनी होगी।
No comments:
Post a Comment