सज़ा का डर रोकेगा अपराध
नरेन्द्र मोदी सरकार ने बलात्कारए यौन हिंसाए तेजाब हमलों और हत्या जैसे जघन्य अपराधों में संलिप्त होने वाले 16 से 18 साल के किशारों पर भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों के तहत मुकदमा चलाने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है। इस तरह के जघन्य अपराधों में संलिप्त किशारों को अब किशोर न्याय ;देखभाल एवं संरक्षणद्ध कानून का लाभ नहीं मिल सकेगा।
राजधानी में 2012 में हुए निर्भया सामूहिक बलात्कार कांड के बाद स्थिति की गंभीरता को देखते हुए सरकार ने पिछले साल लोकसभा में किशोर न्याय ;बच्चों की देखभाल एवं संरक्षणद्ध विधेयक 2014 पेश किया था। इस विधेयक को संसद की स्थाई समिति के पास भेजा गया थाए जिसने मार्च में पेश अपनी रिपोर्ट में किशोर की परिभाषा में संशोधन कर उनकी आयु सीमा 18 साल से घटाकर 16 साल करने का प्रस्ताव ठुकरा दिया था। इस बीचए जघन्य अपराधों में नाबालिगों को बढ़ती संलिप्तता के मद्दनजर किशोरों से संंबंधित कानूनी प्रावधानों पर फिर से गौर करने के लिये उच्चतम न्यायालय का दबाव भी सरकार पर पड़ रहा था।
केन्द्र सरकार ने संसद की स्थाई समिति की रिपोर्ट और बाल अधिकारों के लिये संघर्षरत वर्गों के प्रतिरोध को दरकिनार करते हुए बलात्कारए यौन हिंसाए हत्या और डकैती जैसे जघन्य अपराधों में संलिप्त किशोर पर वयस्क की तरह ही मुकदमा चलाने का प्रावधान करने के लिये संसद में लंबित किशोर न्याय ;देखभाल एवं संरक्षणद्ध विधेयकए 2014 में संशोधन के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी।
सरकार ने यह भी निर्णय किया है कि 16 से 18 साल के आयु वर्ग के किसी भी आरोपी पर वयस्क आरोपी के रूप में मुकदमा चलाने का निर्णय किशोर न्याय बोर्ड करेगा। इस बोर्ड में एक मनोचिकित्सक और सामाजिक मुद्दों के एक विशेषज्ञ भी होंगे। किसी किशोर आरोपी पर वयस्क आरोपी के रूप में मुकदमा चलाने के बारे में बोर्ड ही अंतिम निर्णय करेगा।
हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने भी केन्द्र सरकार से कहा था कि बलात्कारए डकैती और हत्या जैसे मामलों में नाबालिग की स्थिति पर विचार किया जाये। न्यायालय का मत था कि वैसे तो ऐसी कई परिस्थितियां हो सकती हैं जिसमें नाबालिग को अपने कृत्य के परिणाम का एहसास नहीं हो लेकिन बलात्कारए हत्याए अपहरण और डकैती जैसे जघन्य अपराध में संलिप्त किशोरों के बारे में यह मानना कठिन होगा कि वे इसके नतीजों को नहीं जानते होंगे।
न्यायालय की चिंता से सहमत होते हुए अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने भी कहा था कि जघन्य अपराधों में किशोरों की संलिप्तता चिंता का विषय है और सरकार इस स्थिति से निबटने के उपाय कर रही है। भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने तो बाकायदा एक याचिका दायर कर उच्चतम न्यायालय से अनुरोध किया था कि इस तरह के जघन्य अपराध में संलिप्त आरोपी की उम्र की बजाय उसकी मानसिक और शारीरिक परिपक्वता को ध्यान में रखा जाये। उनका तर्क था कि इस तरह के अपराध करने वाला किशोर आमतौर पर मानसिक और शारीरिक रूप से परिपक्व होता है और वह अपने कृत्य के बारे में भलीभांति जानता भी है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि देश में जघन्य अपराधों में 16 से 18 साल के किशोरों की भूमिका में लगातार वृद्धि हो रही है। महिला एवं बाल कल्याण मंत्री मेनका गांधी ने इस संबंध में सदन को बताया भी था कि इस तरह के अपराधों में किशोरों की संलिप्तता में 132 फीसदी तक की वृद्धि हुई है।
सरकार अब संसद के वर्तमान सत्र में ही किशोर न्याय ;बच्चों की देखभाल और संरक्षणद्ध विधेयकए 2014 अपेक्षित संशोधन के साथ पारित कराने का प्रयास करेगी। यदि यह विधेयक पारित हो गया तो निश्चित ही 16 से 18 साल के आयु वर्ग के किशोरों को यह संदेश मिल जायेगा कि जघन्य अपराधों में शामिल होने की स्थिति में अब उन्हें किशोर न्याय कानून के तहत संरक्षण नहीं मिल सकेगा और दूसरे अपराधियों की तरह ही उन्हें भी जेल की सलाखों के पीछे रहना पडेगा।
इससे पहले जुलाई 2013 में उच्चतम न्यायालय ने बलात्कार और बलात्कार के प्रयास तथा महिलाओं का शील भंग करने के प्रयास जैसे संगीन अपराधों में किशोरों की भूमिका के मद्देनजर किशोर न्याय कानून के तहत किशोर की आयु घटाकर 16 साल करने से इनकार दिया था। न्यायालय का मत था कि किशोर न्याय ;बच्चों की देखभाल और संरक्षणद्ध कानून 2000 के तहत जघन्य अपराध में दोषी पाये जाने के बावजूद एक किशोर 18 साल का होते ही रिहा कर दिया जाता था लेकिन इस कानून में 2006 में संशोधन के बाद स्थिति बदल गयी है। अब यदि कोई किशोर ऐसे अपराध का दोषी पाया जाता है तो उसे तीन साल की सजा काटनी ही होगीए भले ही वह 18 साल का हो चुका हो। उम्मीद की जानी चाहिए कि नये प्रावधानों के सकारात्मक नतीजे सामने आयेंगे।
नरेन्द्र मोदी सरकार ने बलात्कारए यौन हिंसाए तेजाब हमलों और हत्या जैसे जघन्य अपराधों में संलिप्त होने वाले 16 से 18 साल के किशारों पर भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों के तहत मुकदमा चलाने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है। इस तरह के जघन्य अपराधों में संलिप्त किशारों को अब किशोर न्याय ;देखभाल एवं संरक्षणद्ध कानून का लाभ नहीं मिल सकेगा।
राजधानी में 2012 में हुए निर्भया सामूहिक बलात्कार कांड के बाद स्थिति की गंभीरता को देखते हुए सरकार ने पिछले साल लोकसभा में किशोर न्याय ;बच्चों की देखभाल एवं संरक्षणद्ध विधेयक 2014 पेश किया था। इस विधेयक को संसद की स्थाई समिति के पास भेजा गया थाए जिसने मार्च में पेश अपनी रिपोर्ट में किशोर की परिभाषा में संशोधन कर उनकी आयु सीमा 18 साल से घटाकर 16 साल करने का प्रस्ताव ठुकरा दिया था। इस बीचए जघन्य अपराधों में नाबालिगों को बढ़ती संलिप्तता के मद्दनजर किशोरों से संंबंधित कानूनी प्रावधानों पर फिर से गौर करने के लिये उच्चतम न्यायालय का दबाव भी सरकार पर पड़ रहा था।
केन्द्र सरकार ने संसद की स्थाई समिति की रिपोर्ट और बाल अधिकारों के लिये संघर्षरत वर्गों के प्रतिरोध को दरकिनार करते हुए बलात्कारए यौन हिंसाए हत्या और डकैती जैसे जघन्य अपराधों में संलिप्त किशोर पर वयस्क की तरह ही मुकदमा चलाने का प्रावधान करने के लिये संसद में लंबित किशोर न्याय ;देखभाल एवं संरक्षणद्ध विधेयकए 2014 में संशोधन के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी।
सरकार ने यह भी निर्णय किया है कि 16 से 18 साल के आयु वर्ग के किसी भी आरोपी पर वयस्क आरोपी के रूप में मुकदमा चलाने का निर्णय किशोर न्याय बोर्ड करेगा। इस बोर्ड में एक मनोचिकित्सक और सामाजिक मुद्दों के एक विशेषज्ञ भी होंगे। किसी किशोर आरोपी पर वयस्क आरोपी के रूप में मुकदमा चलाने के बारे में बोर्ड ही अंतिम निर्णय करेगा।
हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने भी केन्द्र सरकार से कहा था कि बलात्कारए डकैती और हत्या जैसे मामलों में नाबालिग की स्थिति पर विचार किया जाये। न्यायालय का मत था कि वैसे तो ऐसी कई परिस्थितियां हो सकती हैं जिसमें नाबालिग को अपने कृत्य के परिणाम का एहसास नहीं हो लेकिन बलात्कारए हत्याए अपहरण और डकैती जैसे जघन्य अपराध में संलिप्त किशोरों के बारे में यह मानना कठिन होगा कि वे इसके नतीजों को नहीं जानते होंगे।
न्यायालय की चिंता से सहमत होते हुए अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने भी कहा था कि जघन्य अपराधों में किशोरों की संलिप्तता चिंता का विषय है और सरकार इस स्थिति से निबटने के उपाय कर रही है। भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने तो बाकायदा एक याचिका दायर कर उच्चतम न्यायालय से अनुरोध किया था कि इस तरह के जघन्य अपराध में संलिप्त आरोपी की उम्र की बजाय उसकी मानसिक और शारीरिक परिपक्वता को ध्यान में रखा जाये। उनका तर्क था कि इस तरह के अपराध करने वाला किशोर आमतौर पर मानसिक और शारीरिक रूप से परिपक्व होता है और वह अपने कृत्य के बारे में भलीभांति जानता भी है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि देश में जघन्य अपराधों में 16 से 18 साल के किशोरों की भूमिका में लगातार वृद्धि हो रही है। महिला एवं बाल कल्याण मंत्री मेनका गांधी ने इस संबंध में सदन को बताया भी था कि इस तरह के अपराधों में किशोरों की संलिप्तता में 132 फीसदी तक की वृद्धि हुई है।
सरकार अब संसद के वर्तमान सत्र में ही किशोर न्याय ;बच्चों की देखभाल और संरक्षणद्ध विधेयकए 2014 अपेक्षित संशोधन के साथ पारित कराने का प्रयास करेगी। यदि यह विधेयक पारित हो गया तो निश्चित ही 16 से 18 साल के आयु वर्ग के किशोरों को यह संदेश मिल जायेगा कि जघन्य अपराधों में शामिल होने की स्थिति में अब उन्हें किशोर न्याय कानून के तहत संरक्षण नहीं मिल सकेगा और दूसरे अपराधियों की तरह ही उन्हें भी जेल की सलाखों के पीछे रहना पडेगा।
इससे पहले जुलाई 2013 में उच्चतम न्यायालय ने बलात्कार और बलात्कार के प्रयास तथा महिलाओं का शील भंग करने के प्रयास जैसे संगीन अपराधों में किशोरों की भूमिका के मद्देनजर किशोर न्याय कानून के तहत किशोर की आयु घटाकर 16 साल करने से इनकार दिया था। न्यायालय का मत था कि किशोर न्याय ;बच्चों की देखभाल और संरक्षणद्ध कानून 2000 के तहत जघन्य अपराध में दोषी पाये जाने के बावजूद एक किशोर 18 साल का होते ही रिहा कर दिया जाता था लेकिन इस कानून में 2006 में संशोधन के बाद स्थिति बदल गयी है। अब यदि कोई किशोर ऐसे अपराध का दोषी पाया जाता है तो उसे तीन साल की सजा काटनी ही होगीए भले ही वह 18 साल का हो चुका हो। उम्मीद की जानी चाहिए कि नये प्रावधानों के सकारात्मक नतीजे सामने आयेंगे।
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