Tuesday, 28 April 2015

एक ही डंडे से न हांकें

एक ही डंडे से न हांकें


अमेरिकी फंडिंग एजेंसी श्फोर्ड फाउंडेशनश् को निगरानी सूची में डाले जाने के बाद केंद्र सरकार और स्वैच्छिक संस्थाओं ;एनजीओद्ध के बीच तकरार और बढ़ गई है। इससे पहले पर्यावरण के लिए काम करने वाले संगठन श्ग्रीनपीसश् का लाइसेंस रद्द करके भारत में इसके सभी बैंक खातों को सील कर दिया गया था।

केंद्रीय गृह मंत्रालय का कहना है कि विदेशों से आर्थिक सहायता प्राप्त गैर सरकारी संगठनों में से 10 हजार से ज्यादा ने 2009 से अब तक के आय.व्यय का हिसाब नहीं दिया है। ये संगठन मनी.लॉन्ड्रिग और आतंकी गतिविधियों में लिप्त हो सकते हैं। फरवरी में मंत्रालय की खुफिया रिपोर्ट में कहा गया कि ये संस्थाएं विदेशी पैसे के बल पर ऐसा माहौल बनाने में जुटी हैंए जिससे विकास की कई परियोजनाएं बाधित हो रही हैं।

सरकार के रवैये के खिलाफ कुछ संगठनों ने कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया है। उनका कहना है कि सरकार बदले की भावना से काम कर रही है। उन्हीं संगठनों को निशाना बनाया जा रहा है जो सरकार की नीतियों पर सवाल उठा रहे हैं। हालांकि सरकार के अलावा देश के कई बुद्धिजीवियों ने भी इन संगठनों की भूमिका पर सवाल उठाए हैं। उनका मानना है कि कई परियोजनाओं को लेकर इन संगठनों का विरोध अतार्किक है और लगता हैए ये सिर्फ विरोध के लिए विरोध कर रहे हैं।

यह बहस अभी दूर तक जाने वाली हैए लेकिन यह प्रश्न तो बचा रहेगा कि आखिर सरकार को एनजीओ सेक्टर के प्रति कैसा रुख अपनाना चाहिएघ् आज के दौर में स्वैच्छिक संगठनों की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकताए लेकिन हमें अपने राष्ट्रीय हितों का ध्यान सबसे पहले रखना होगा।

एनजीओ क्षेत्र को विदेश से धन भारतीय रिजर्व बैंक के जरिए ही आता है। सरकार और उसकी खुफिया एजेंसियों को इस धन के स्रोत और इसके इस्तेमाल पर नजर रखनी चाहिए। किसी भी संस्था की भूमिका अगर किसी खास मामले में संदिग्ध दिखती है तो उसके खिलाफ कार्रवाई भी की जा सकती हैए बशर्ते मामला ठोस हो। किसी स्थानीय गड़बड़ी को लेकर पूरे संगठन को या पूरे एनजीओ सेक्टर को ही दोषी ठहराना गलत है।

प्रतिबंध को एकदम आखिरी विकल्प की तरह ही देखना ठीक है। एनजीओ सेक्टर के लिए हमारे यहां एक स्पष्ट और पारदर्शी कानून का अभाव है। कॉर्पोरेट जगत पर फंडिंग और इनकम टैक्स के नियम साफ हैंए जबकि एनजीओ सेक्टर को लेकर कुछ भी साफ नहीं है। ऐसे संगठनों के पंजीकरण का कानून ही डेढ़ सौ साल पुराना है। आयकर के नियम एनजीओ को मिलने वाले पैसे पर लागू नहीं होते। इन संगठनों को अपने मुनाफे पर कोई टैक्स नहीं देना पड़ता।

एफसीआरए मूलतरू राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा कानून है। इसमें बीच.बीच में बदलाव भी हुए हैंए लेकिन इसे एक मुकम्मल कानून बनाने के लिए इसमें काफी बदलाव की गुंजाइश है। समय आ गया है कि सरकार एनजीओ सेक्टर को लेकर एक तार्किक रवैया अपनाए। इसके बजाय एक झटके में कुछ कर गुजरने की नीति भारत जैसे बड़े लोकतंत्र की छवि के लिए नुकसानदेह साबित होगी।

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