Wednesday, 22 April 2015

सूर्य काम.वासना का केंद्र होता है

सूर्य काम वासना का केंद्र होता है 




बाहर के सूर्य की भांति मनुष्य के भीतर भी सूर्य छिपा हुआ हैए बाहर के चांद की ही भांति मनुष्य के भीतर भी चांद छिपा हुआ है।रस इसी में है कि वे अंतर्जगत के आंतरिक व्यक्तित्व का संपूर्ण भूगोल हमें दे देना चाहते हैं। इसलिए जब वे कहते हैं कि . श्भुवन ज्ञानम्‌ सूर्ये संयमात।श् . सूर्य पर संयम संपन्न करने से सौर ज्ञान की उपलब्धि होती है।श् तो उनका संकेत उस सूर्य की ओर नहीं है जो बाहर है। उनका मतलब उस सूर्य से है जो हमारे भीतर है।

हमारे भीतर सूर्य कहां हैघ् हमारे अंतस के सौर.तंत्र का केंद्र कहा हैघ् वह केंद्र ठीक प्रजनन.तंत्र की गहनता में छिपा हुआ है। इसीलिए कामवासना में एक प्रकार की ऊष्णताए एक प्रकार की गर्मी होती है।

कामवासना का केंद्र सूर्य होता है। इसीलिए तो कामवासना व्यक्ति को इतना ऊष्ण और उत्तेजित कर देती है। जब कोई व्यक्ति कामवासना में उतरता है तो वह उत्तप्त से उत्तप्त होता चला जाता है। व्यक्ति कामवासना के प्रवाह में एक तरह से ज्वर.ग्रस्त हो जाता हैए पसीने से एकदम तर.बतर हो जाता हैए उसकी श्वास भी अलग ढंग से चलने लगती है। और उसके बाद व्यक्ति थककर सो जाता है।

जब व्यक्ति कामवासना से थक जाता है तो तुरंत भीतर चंद्र ऊर्जा सक्रिय हो जाती है। जब सूर्य छिप जाता है तब चंद्र का उदय होता है। इसीलिए तो काम.क्रीड़ा के तुरंत बाद व्यक्ति को नींद आने लगती है। सूर्य ऊर्जा का काम समाप्त हो चुकाए अब चंद्र ऊर्जा का कार्य प्रारंभ होता है।

भीतर की सूर्य ऊर्जा काम.केंद्र है। उस सूर्य ऊर्जा पर संयम केंद्रित करने सेए व्यक्ति भीतर के संपूर्ण सौर.तंत्र को जान ले सकता है। काम.केंद्र पर संयम करने से व्यक्ति काम के पार जाने में सक्षम हो जाता है। काम.केंद्र के सभी रहस्यों को जान सकता है। लेकिन बाहर के सूर्य के साथ उसका कोई भी संबंध नहीं है।

लेकिन अगर कोई व्यक्ति भीतर के सूर्य को जान लेता है तो उसके प्रतिबिंब से वह बाहर के सूर्य को भी जान सकता है। सूर्य इस अस्तित्व के सौर.मंडल का काम.केंद्र है। इसी कारण जिसमें भी जीवन हैए प्राण हैए उसको सूर्य की रोशनीए सूर्य की गर्मी को आवश्यकता है। जैसे कि वृक्ष अधिक से अधिक ऊपर जाना चाहते हैं।

किसी अन्य देश की अपेक्षा अफ्रीका में वृक्ष सबसे अधिक ऊँचे हैं। कारण अफ्रीका के जंगल इतने घने हैं और इस कारण वृक्षों में वापस में इतनी अधिक प्रतियोगिता है कि अगर वृक्ष ऊपर नहीं उठेगा तो सूर्य की किरणों तक पहुंच ही नहीं पाएगाए उसे सूर्य की रोशनी मिलेगी ही नहीं। और अगर सूर्य की रोशनी वृक्ष को नहीं मिलेगी तो वह मर जाएगा। इस तरह से सूर्य वृक्ष को उपलब्ध न होगा और वृक्ष सूर्य को उपलब्ध न होगाए वृक्ष को सूर्य की जीवन ऊर्जा मिल ही न पाएगी।
जैसे सूर्य जीवन हैए वैसे ही कामवासना भी जीवन है। इस पृथ्वी पर जीवन सूर्य से ही हैए और ठीक इसी तरह से कामवासना से ही जीवन जन्म लेता है. सभी प्रकार के जीवन का जन्म काम से ही होता है।
अफ्रीका में वृक्ष अधिक से अधिक ऊंचे जाना चाहते हैंए ताकि वे सूर्य को उपलब्ध हो सकें और सूर्य उन्हें उपलब्ध हो सके। इन वृक्षों को ही देखो। जिस तरह से वृक्ष इस ओर हैं. यह पाइन के वृक्षए ठीक वैसे ही वृक्ष दूसरी ओर भी हैं. और उस तरफ के वृक्ष छोटे ही रह गए हैं। इस तरह के वृक्ष ऊपर छोटे ही रह गए हैं। इस तरह के वृक्ष ऊपर ऊपर बढ़ते ही चले जा रहे हैं। क्योंकि इस ओर सूर्य की किरणें अधिक पहुँच रही हैंए दूसरी ओर सूर्य की किरणें अधिक नहीं पहुँच पा रही हैं।
काम भीतर का सूर्य हैए और सूर्य सौर.मंडल का काम.केंद्र है। भीतर के सूर्य के प्रतिबिंब के माध्यम से व्यक्ति बाहर के सौर.तंत्र का ज्ञान भी प्राप्त कर सकता हैए लेकिन बुनियादी बात तो आंतरिक सौर.तंत्र को समझने की है।
श्सूर्य पर संयम संपन्न करने सेए संपूर्ण सौर.ज्ञान की उपलब्धि होती है।श्
इस पृथ्वी के लोगों को दो भागों में विभक्त किया जा सकता हैए सूर्य.व्यक्ति और चंद्र.व्यक्तिए या हम उन्हें यांग और यिन भी कह सकते हैं। सूर्य पुरुष का गुण हैय स्त्री चंद्र का गुण है। सूर्य आक्रामक होता हैए सूर्य सकारात्मक हैय चंद्र ग्रहणशील होता हैए निष्क्रिय होता है।
सारे जगत के लोगों को सूर्य और चंद्र इन दो रूपों में विभक्त किया जा सकता है। और हम अपने शरीर को भी सूर्य और चंद्र में विभक्त कर सकते हैंय योग ने इसे इसी भांति विभक्त किया है।
योग में तो संपूर्ण शरीर को ही विभक्त कर दिया गया है रू मन का एक हिस्सा पुरुष हैए मन का दूसरा हिस्सा स्त्री है। और व्यक्ति को सूर्य से चंद्र की ओर बढ़ना हैए और अंत में दोनों के भी पार जाना हैए दोनों का अतिक्रमण करना है।

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