Saturday, 25 April 2015

मूकदर्शक व्यवस्था

मूकदर्शक व्यवस्था


गजेंद्र की मौत के अपराधी हैं सभी
देश की राजधानी दिल्ली के जंतर मंतर पर बुधवार की दोपहर राजस्थान के एक किसान गजेंद्र सिंह द्वारा आत्महत्या पूरी व्यवस्था को ही कठघरे में खड़ा करने वाली है। किसान के नाम पर दशकों से देश में राजनीति हो रही हैए सत्ता परिवर्तन भी होते रहे हैंए पर एक किसान ने बुधवार की दोपहर किसान रैली के ही मंच से कुछ दूर पेड़ से लटककर जान दे दीए लेकिन उसे बचाने कोई आगे नहीं आया। राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए अब दावे चाहे जो भी किये जायेंए पर माना तो यही जायेगा कि दौसा निवासी गजेंद्र भी आम आदमी पार्टी द्वारा भूमि अधिग्रहण विधेयक के विरोध में आयोजित किसान रैली में भाग लेने आया होगाए लेकिन उस रैली के आयोजक और वक्ताए सभी उसे फंदे पर झूलता देखते रहे और उसके बाद भी उनके भाषणों का सिलसिला रुका नहीं। बेशक किसान रैली में ही आये दो युवाओं ने उसे अपने स्तर पर बचाने का प्रयास कियाए लेकिन वह अपर्याप्त साबित हुआ। सुसाइड नोट बताता है कि बेमौसम बारिश से फसल बर्बाद हो जाने पर पिता ने गजेंद्र को घर से निकाल दिया था और उसे तीन बच्चों वाले परिवार के भरण.पोषण का कोई जरिया नजर नहीं आ रहा थाए लेकिन अब हमारे राजनेताओं को उसकी आत्महत्या में भी राजनीति नजर आ रही है। नजर ही नहीं आ रहीए वे खुद भी बेशर्मी से राजनीति कर रहे हैं। जाहिर हैए ऐसी आपदाओं की घड़ी में अगर सत्ता व्यवस्था ने तत्काल मदद और मरहम की संवेदना दिखायी होती तो गजेंद्र राजस्थान से दिल्ली आकर जान नहीं देता। अपने घर.खेत में जान देने वालों की तो संख्या ही अनगिनत है।
आम आदमी की राजनीति के नाम पर सत्ता में पहुंचे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपने डिप्टी मनीष सिसौदिया और अन्य सिपहसालारों के साथ उस समय मंच पर ही थेए पर पेड़ पर चढ़कर फंदा लगाने वाले गजेंद्र को बचाने के लिए उनमें से कोई आगे नहीं आया। बेशक दिल्ली पुलिस भी इसे राजनीतिक रैलियों के दौरान आये दिन की नौटंकी मानकर मूकदर्शक बने रहने के अपराध से मुक्त नहीं हो सकतीए पर वोट के लिए बिजली के खंभे पर चढ़ जाने वाले केजरीवाल गजेंद्र को बचाने मंच से उतरकर पेड़ तक क्यों नहीं गयेघ् मीडिया के लिए भी यह हादसा एक खबर से ज्यादा नहीं था। सोए सारा ध्यान और ऊर्जा कैमरों के फोकस और सुसाइड नोट तक सीमित रहे। किसान के नाम पर राजनीति करने वालों ने एक किसान की ऐसी दर्दनाक मौत के बाद रैली.भाषण स्थगित करने की संवेदनशीलता क्यों नहीं दिखायीघ् खुद को कवि बताने वालों का हृदय भी नहीं पसीजा। सत्ता.केंद्रित राजनीति की विद्रूपता यहीं समाप्त नहीं होती। बाद में कमोबेश सभी दलों के नेता अपना चेहरा दिखाने राममनोहर लोहिया अस्पताल जरूर पहुंचेए जहां गजेंद्र को मृत घोषित कर दिया गया था। गजेंद्र की दर्दनाक मौत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि किसान स्वयं को अकेला न समझेंए पर सवाल यह है कि ऐसी संवेदनहीन व्यवस्था में वह अपना समझें भी तो किसेघ्

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