Thursday, 16 April 2015

सहजीवन में संपत्ति का हक

सहजीवन में संपत्ति का हक

उच्चतम न्यायालय ने ष्लिव इन रिलेशनष् अर्थात सहजीवन में जिंदगी गुजारने वाले दंपति की सामाजिक स्थिति को लेकर उठने वाले विवाद पर एक बार फिर विराम लगाते हुए कहा है कि विवाह किये बगैर ही यदि कोई स्त्री.पुरुष लंबे समय तक पति.पत्नी के रूप में रहते हैं तो यह माना जायेगा कि वे विवाहित हैं और पति की मृत्यु होने की स्थिति में वह भी अपने जीवन साथी की संपत्ति में हिस्सा पाने की हकदार होगी। सहजीवन में जिंदगी बसर करने वाली महिला की स्थिति विवाहिता जैसी नहीं होने संबंधी परिजनों के दावों के संदर्भ में न्यायालय ने एक अच्छी व्यवस्था दी है कि यह साबित करना दूसरे पक्ष की जिम्मेदारी है कि ऐसा जोड़ा कानूनी रूप से विवाहित नहीं था। वैसे उच्चतम न्यायालय इससे पहले कई बार स्पष्ट कर चुका है कि वैवाहिक रिश्तों के तहत मिलने वाले लाभ प्राप्त करने के लिये सहजीवन गुजारने वाली महिला को यह सिद्ध करना होगा कि वह विवाह जैसे संबंधों के मानदंडों को पूरा करती है। उच्चतम न्यायालय सहजीवन के रिश्तों पर अपनी मुहर लगाता रहा है। लेकिन ऐसा करते समय इसके लिये कुछ शर्तों पर खरा उतरना जरूरी है। इसमें पहली शर्त तो यह कि ऐसे जोड़े को समाज ने एक.दूसरे का जीवन साथी स्वीकार किया होए दूसरी शर्त यह है कि दोनों कानूनी नजरिये से विवाह करने वाली उम्र में होंए तीसरी शर्त यह है कि वे बिन ब्याहे जीवन गुजारने के बावजूद कानूनी तरीके से वैवाहिक जीवन व्यतीत करने की पात्रता रखते हों और चौथी शर्त यह कि वे स्वेच्छा से लंबे समय से पति. पत्नी के रूप में रह रहें हों। सहजीवन का सबसे महत्वपूर्ण सूत्र है कि बिन ब्याहे ही पति.पत्नी के रूप में लंबी अवधि तक एक साथ रहना और समाज में पति.पत्नी के रूप में ही खुद को पेश करना। इस पैमाने पर खरा उतरने वाले जोड़ों से जन्म लेने वाली संतानों को न सिर्फ ऐसे व्यक्ति की संपत्ति में हिस्सा मिलेगा बल्कि ऐसे रिश्ते निभाने वाली महिला को अपने जीवन साथी का निधन होने की स्थिति में उसकी भविष्य निधि और पेंशन सहित दूसरे कानूनी अधिकार भी मिल सकेंगे। हाल ही में बंबई उच्च न्यायालय ने बालीवुड स्टार रहे राजेश खन्ना के साथ सहजीवन गुजारने का दावा करने वाली अनीता अाडवाणी द्वारा महिलाओं को घरेलू हिंसा से संरक्षण कानून के तहत डिंपल कपाडि़याए पुत्री टिं‍्वकल खन्ना और अभिनेता अक्षय कुमार के खिलाफ निचली अदालत में दायर शिकायत निरस्त कर दी। उच्च न्यायालय ने दो टूक शब्दों में कहा कि चूंकि राजेश खन्ना और अनीता आडवाणी के रिश्ते शादी जैसे नहीं थेए इसलिए वह महिलाओं को घरेलू हिंसा से संरक्षण कानून के तहत कोई राहत पाने की पात्र नहीं है। सहजीवन के संदर्भ में महिलाओं को घरेलू हिंसा से संरक्षण कानून के तहत राहत प्राप्त करने से जुड़े मसले पर उच्चतम न्यायालय पहले ही व्यवस्था दे चुका है कि यदि कोई महिला यह जानते हुए कि उसका साथी पुरुष पहले से ही विवाहित हैए उसके साथ सहजीवन अपनाती है तो उसे इस कानून के तहत कोई राहत नहीं मिल सकती। ऐसे मामले में महिला की स्थिति वैवाहिक रिश्ते में जीवन साथी जैसी नहीं हो सकती क्योंकि सहजीवन के सभी मामले वैवाहिक रिश्ते जैसे नहीं हो सकते। जहां तक सहजीवन और बिन ब्याहे एक.दूजे के साथ लंबे समय से जीवन व्यतीत कर रहे जोड़ों और इनसे जन्म लेने वाली संतानों के अधिकारों का सवाल है तो इस संबंध में 1927 में प्रीवी काउंसिल ने पहली बार सुविचारित व्यवस्था दी थी। इस व्यवस्था के आलोक में ही उच्चतम न्यायालय ने बिन ब्याहे जोड़ों की स्थिति को दांपत्य जीवन या वैवाहिक जीवन मानने के लिये एक.दूजे के साथ समय गुजारने की अवधि को सबसे बड़ा साक्ष्य या प्रमाण माना है। इसके बाद 1929 में भी प्रीवी काउंिसल ने इन विषयों से जुड़े सवालों पर अपनी व्यवस्था में कहा था कि बिन ब्याह सहजीवन में रहने वाली महिला और पुरुष के रिश्तों को वैध विवाह माना जा सकता है बशर्ते यह दंपति एक साथ रहे हों और ऐसे दावे को गलत सिद्ध करने वाला कोई सबूत नहीं हो। ऐसे जोड़े की वैवाहिक स्थिति पर उच्चतम न्यायालय ने 1952 में गोकल चंद बनाम परवीन कुमार और फिर 1978 में बदरी प्रसाद के मामले में पति.पत्नी के रूप में सालों एक साथ गुजारने के तथ्य को महत्व दिया और माना कि कानूनी दृष्टि से ये विवाह था। न्यायालय यह भी स्पष्ट कर चुका है कि बिन ब्याहे पति.पत्नी के रूप में लंबा जीवन गुजारने वाले ऐसे जोड़े से उत्पन्न संतान नाजायज नहीं हो सकती और ऐसी संतान को अपने पिता की जायदाद में हक भी मिलेगा। यह सही है कि बिन ब्याहे एक साथ जीवन गुजारने वाले जोड़ों को भले ही कुछ साल पहले तक दकियानूसी वजहों से सामाजिक मान्यता नहीं मिली हो लेकिन कानून ऐसे रिश्तों को हेय दृष्टि से नहीं देखता। न्यायालय की इन तमाम व्यवस्थाओं से यह निष्कर्ष नहीं निकाला जाना चाहिए कि बिन ब्याहे महिला.पुरुषों के एक साथ कुछ समय गुजारने को भी ष्लिव इन रिलेशनष् के रूप में मान्यता मिल गयी है। घरेलू हिंसा से महिलाओं को संरक्षण कानून के संदर्भ में उच्चतम न्यायालय की व्यवस्थायें भी इस भ्रम को दूर ही करती हैं। सहजीवन के संदर्भ में न्यायालय की व्यवस्था से एक तथ्य एकदम साफ है कि बिन ब्याहे पति.पत्नी के रूप में किसी महिला और पुरुष ने एक साथ कितना समय गुजारा है और इसके अकाट्य प्रमाण भी उपलब्ध हैं।

No comments:

Post a Comment