Tuesday, 14 April 2015

विवादों का सिलसिला

 


विवादों का सिलसिला







ऐसे वक्त में जब विदेश राज्यमंत्री व पूर्व थल सेनाध्यक्ष जनरल वी.के. सिंह यमन से भारतीयों को सकुशल देश लाने का श्रेय ले सकते थे, अनावश्यक विवादों में फंस गए। यमन में चलाये गए आप्रेशन राहत के बीच सोशल मीडिया पर मीडिया को लेकर अशोभनीय टिप्पणी के बाद खासा विवाद हुआ। हालांकि उन्होंने बाद में माफी मांग ली लेकिन विवाद कम होते नजर नहीं आ रहे हैं। ऐसा लगता है कि विवादों से उनका नाता यूं ही चलता रहेगा। अपने सेनाध्यक्ष कार्यकाल को लेकर उनके तमाम विवाद सामने आते रहे। उम्र विवाद तो सरकार से लेकर अदालत तक चलता रहा। सेवानिवृत्ति के उपरांत वे कभी अन्ना के मंच पर नजर आए और फिर भाजपाई हो गए। चुनाव भी जीता और मंत्री भी बने। फिर सेनाध्यक्ष पद पर अपनी पसंद के व्यक्ति की नियुक्ति के आग्रह को लेकर खासा विवाद हुआ। कहीं न कहीं सेना जैसा अनुशासन उनकी वाणी में नजर नहीं आता। गाहे बगाहे उनके विवादित बोल मीडिया की सुर्खियां बनते ही रहते हैं। यही वजह है कि आज उनकी गिनती मोदी सरकार के सबसे विवादित मंत्रियों में होने लगी है।
दरअसल आम नेताओं के बड़बोलेपन से अाजिज जनता मानकर चलती है कि राजनेता ऐसे बयानों से चर्चाओं में रहना चाहते हैं। मगर जब कोई व्यक्ति सेनाध्यक्ष पद के अनुभव के साथ केंद्र सरकार में मंत्री बनता है तो अनुशासित वाणी की अपेक्षा बढ़ जाती है। विडंबना यही है कि विदेश राज्यमंत्री के बयानों में गंभीरता व अनुशासन नजर नहीं आया। हाल में उनके एक बयान ने विवादों की शृंखला में नया आयाम जोड़ा कि हथियार लॉबी के इशारे पर उनके विरुद्ध कपटी अभियान चलाया जा रहा है। वे इस बाबत सारी जानकारी प्रधानमंत्री को देने की बात भी करते हैं। हो सकता है कि उनकी बात में कुछ दम हो, लेकिन उन्हें सार्वजनिक जीवन में मर्यादित भाषा का उपयोग करना चाहिए। बल्कि जिस पद से वे आए हैं, उसके अनुरूप गरिमा भी सार्वजनिक जीवन में स्थापित करनी चाहिए। विडंबना यही है कि व्यावहारिक जीवन में ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है। कमोबेश ऐसी गैरजिम्मेदार टिप्पणी उन्होंने पाक दिवस पर पाकिस्तानी उच्चायोग में आयोजित कार्यक्रम में शामिल होने की बाद की थी। वह टिप्पणी राजनय व कूटनीतिक नजरिये से उचित नहीं कही जा सकती।

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