राजनीति में साधुओं के दखल का है लंबा इतिहास
जब से हमने 1947 में स्वाधीनता अर्जित की है, धार्मिक स्त्री−पुरुष जनमानस और सरकार को प्रभावित करने का प्रयत्न करते रहे हैं। हमारे पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू नास्तिक थे। वह विधुर थे और उनके जीवन में कुछेक महिलाएं थीं जिनमें पद्मजा नायडू और एडविना माऊंटबेटन थीं। एक तांत्रिक श्रद्धा माता भी थीं जिनके बारे में पंडित जी के प्राइवेट सैक्रेटरी एमओ मथाई ने अपनी पुस्तक में दावा किया है कि उन्हें उनसे एक बच्चा भी हुआ। वह एक आकर्षक साध्वी थीं जिन्हें मैं अच्छी तरह जानता था। मैं उन्हें तब मिलने गया था जब वह जलती चिताओं के बीच निगमबोध घाट पर रहा करती थीं। वह जयपुर चली गईं जहां महाराजा ने उन्हें एक छोटी किलेनुमा हवेली भेंट की जिसमें कुछ परिवार सांपों और काले कुत्तों के साथ रहते थे। जब भी मैं जयपुर जाता मैं उनसे मिलता था। उन्होंने स्वीकार किया कि पंडित जी के साथ उनका संबंध था लेकिन उनसे शादी नहीं कर सकीं क्योंकि वह ब्राह्मण थे और यह क्षत्रिय। जो भी हो, उन्होंने कभी उनके फैसलों को प्रभावित करने की कोशिश नहीं की।
इंदिरा गांधी के पास साधु महात्मा अपने आप चले आते थे। सबसे करीब धीरेन्द्र ब्रह्मचारी थे। उन्हें एक सरकारी बंगला दिया गया जिसमें एक बड़ा बगीचा था जहां वह काली गायों का झुंड रखते थे और उनका दावा था कि उनके दूध में औषधीय गुण हैं। वह एक सुंदर दाढ़ी रखने वाले बिहारी थे जो कि घोर सर्दी में भी सफेद कुर्ता और धोती पहनते थे। श्रीमती गांधी के कार्यालय और घर उनका रोजाना आना−जाना होता था। उन्होंने अपने लिए बहुत कुछ किया। उनकी जम्मू में बंदूकों की फैक्टरी थी और दिल्ली और जम्मू के बीच अपना हवाई जहाज उड़ाते थे। उनकी मृत्यु अपने जहाज के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने से हुई।
फिर एक चंद्रास्वामी थे। मुझे उनके बारे में ज्यादा कुछ याद नहीं रहा कि वह बहुत से महत्वपूर्ण लोगों के साथ अपनी निकटता की खबरों के अलावा क्या करते थे और अब वह न जाने कहां चले गए।
और अब हमारे सामने बाबा रामदेव हैं सबसे ज्यादा प्रसिद्ध संन्यासी जिनके अनुयायियों की संख्या बहुत ज्यादा है। मूल रूप से वह योग के अध्यापक हैं। योग अपने आपको दुरुस्त रखने का वैज्ञानिक तरीका है इससे ज्यादा कुछ नहीं। यह दावा करना कि वह योग से कैंसर का उपचार कर सकते हैं एकदम मूर्खता है। लेकिन अपनी मांगों के पूरा होने तक उनकी अनशन करने की धमकी ने पिछली सरकार को मुसीबत में डाल दिया था। वास्तव में वह सरकार से भ्रष्टाचार समाप्त करने के लिए क्या करवाना चाहते हैं यह स्पष्ट नहीं हो पाया। लेकिन दूसरों से अपने आपको ज्यादा पवित्र समझने की मुद्रा में आने से पहले उन्हें यह बताना ही चाहिए कि हरिद्वार और उसके आसपास उनके पास इतनी ज्यादा सम्पत्ति कहां से आई।
भ्रष्टाचार सब जगह व्याप्त है, ऐसी बीमारी का कोई चमत्कारी इलाज नहीं है जिसने हमारे समाज की पीढि़यों से ग्रस्त किया हुआ है। हमें इस पर चारों तरफ से हमला करना होगा। छोटे−छोटे बच्चों को नर्सरी कक्षाओं से सिखाना होगा कि यह पाप है ताकि पूरी तरह से एक नई पीढ़ी का जन्म हो जो इस कलंक से मुक्त हो।
युवा मीडिया महारानी
सरकार बंधुओं अविक और अरूप दोनों ने मिल कर पश्चिम बंगाल के समाचार जगत पर अपना एकाधिकार जमा लिया है। वे आनंद बाजार पत्रिका, द टैलीग्राफ और बहुत−सी पत्रिकाओं के मालिक हैं। वे बंगाली लेखकों और कवियों को जीविका प्रदान करते हैं और साथ ही निर्वासित महिला लेखक तसलीमा नसरीन की हिमायत में भी खड़े होते हैं। ऐसा लगता है कि उन्होंने अपनी अगली पीढ़ी को जिम्मेदारी सौंपने का फैसला कर लिया है। मुझे ज्यादा कुछ तो नहीं मालूम लेकिन अविक की बेटी चीकी को जानता हूं।
कुछ साल पहले उसने 'रैंडम हाऊस' खरीदा था जोकि पैंग्विन वाइकिंग इंडिया का विरोधी पब्लिशिंग हाउस है जिसमें उनके पिता के 42 प्रतिशत शेयर थे। मैंने कंसल्टैंट के रूप में उनका प्रतिनिधित्व किया और पारिश्रमिक लिया तथा सभी प्रकाशनों को बिना किसी कीमत के दिलवा दिया। जब मैं पहली बार चीकी सरकार से मिला तो मुझे लगा वह सीधे ही स्कूल से आ रही है। वह अपनी उम्र से बहुत कम लगती है। वह आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ग्रैजुएट है और ब्लूम्स बरी में प्रकाशन का अनुभव है। जिन लेखकों के साथ उसने काम किया उनमें झुम्पा लाहिड़ी, अनिता देसाई, मोहम्मद हनीफ, डेनियल मोइनुद्दीन, रजत दिवाकर और शिहान करुणातालिका हैं। एक साल बाद वह पैंग्विन वाइकिंग की प्रमुख बन गईं। वह मुझसे मिलने आईं थीं। वह एक खुशमिजाज महिला हैं और चिडि़या की तरह चहचहाती रहती हैं।
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