Thursday, 23 April 2015

गति बढ़े तो न्याय मिले

गति बढ़े तो न्याय मिले


अनेक प्रयासों और उपायों के बावजूद न्यायपालिका में लंबित मुकदमों की संख्या में अपेक्षित कमी नहीं होना चिंता का सबब बना हुआ है। उच्चतम न्यायालय से लेकर अधीनस्थ अदालतों में अभी भी तीन करोड़ से अधिक मुकदमे लंबित हैं। स्थिति का अनुमान इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि उच्च न्यायालयों और अधीनस्थ अदालतों में किसी भी समय न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों के 25 फीसदी से अधिक पद रिक्त होना अब आम बात हो चुकी है।
देश के 24 उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के 984 स्वीकृत पद हैं लेकिन अभी भी करीब तीन सौ पद रिक्त हैं। ऐसी स्थिति में सहज ही कल्पना की जा सकती है कि उच्च न्यायालयों में लंबित 44 हजार से भी अधिक मुकदमों का निबटारा तेजी से कैसे हो। इसी तरहए देश की अधीनस्थ न्यायपालिका में न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों के 19756 स्वीकृत पद हैं लेकिन यहां भी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। अधीनस्थ अदालतों में करीब 15400 न्यायाधीश और न्यायिक अधिकारी पदस्थ हैं जबकि इन अदालतों में करीब पौने तीन करोड़ मुकदमे लंबित हैं।
अदालतों में लंबित मुकदमों की समस्या से निबटने के लिये लोक अदालतों का भी आयोजन किया जा रहा है। लेकिन इसके बावजूद न्यायपालिका को इनकी संख्या घटाने में अपेक्षित सफलता नहीं मिल रही है। अदालतों में मुकदमों के बढ़ते बोझ को कम करने के लिये सबसे अधिक आवश्यक न्यायपालिका में बुनियादी सुविधाओं में वृद्धि करना और नयी अदालतों के साथ ही न्यायाधीशों तथा न्यायिक अधिकारियों के नये पदों का सृजन और पहले से रिक्त पदों पर यथाशीघ्र नियुक्तियां करना है।
कानून मंत्री सदानंद गौडा के अनुसार 2013 में मुख्य न्यायाधीशों के सम्मेलन में उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के पदों में 25 फीसदी वृद्धि करने का प्रस्ताव पारित किया गया था। इस प्रस्ताव के अनुरूप न्यायाधीशों के नये पदों के सृजन के प्रयास किये जा रहे हैं। नये पदों के सृजन का प्रयास सराहनीय हो सकता है लेकिन इससे कहीं अधिक जरूरी मौजूदा रिक्त स्थानों पर नियुक्ति की प्रक्रिया को तेज करना है। हो सकता है कि राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग कानून लागू हो जाने की वजह से उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया में विलंब हो लेकिन अधीनस्थ अदालतों में तो इस तरह की नियुक्तियों में कोई अड़चन नहीं है।
सरकार ने ग्रामीणों को उनके दरवाजे पर ही सुगमता से न्याय सुलभ कराने के इरादे से करीब सात साल पहले ग्राम न्यायालय कानून के तहत पांच हजार से अधिक ग्राम अदालतों की स्थापना की कल्पना की थी लेकिन इस दिशा में अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी। प्राप्त जानकारी के अनुसार दस राज्यों में सिर्फ 194 ग्राम न्यायालय ही स्थापित हो सके हैं। इनमें सबसे अधिक 89 ग्राम न्यायालय मध्य प्रदेश में हैं जबकि पंजाब और हरियाणा में तो सिर्फ दो.दो ग्राम न्यायालय ही काम कर रहे हैं। मध्य प्रदेश के बाद सबसे अधिक 45 ग्राम न्यायालय राजस्थान में और 18 ग्राम न्यायालय महाराष्ट्र में काम कर रहे हैं।
यह सही है कि देश में लगातार बढ़ती आबादी और समय.समय पर बन रहे नये कानूनों के कारण भी अदालतों में मुकदमों की संख्या बढ़ रही है। ऐसी स्थिति में जरूरी है कि कोई भी नया कानून बनाते वक्त न्यायपालिका पर इसके संभावित प्रभाव का आकलन किया जाये। इस संबंध में केन्द्र और राज्य सरकारों को गंभीरता से विचार करना होगा। इस स्थिति से निबटने के लिये केन्द्र के साथ ही राज्य सरकारों को भी न्याय व्यवस्था में सुधार के लिये धन की कमी का बहाना बनाये बगैर ही इस क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं में वृद्धि के लिये राजनीतिक इच्छा शक्ति का परिचय देना होगा।
न्याय प्रदान करने की व्यवस्था को गति प्रदान करने के इरादे से प्रधान न्यायाधीश ने जनवरीए 2014 में ई.कोर्ट कार्ययोजना सरकार के पास मंजूरी के लिये भेजी थी। एक अनुमान के अनुसार इस परियोजना पर करीब 2700 करोड़ रुपए खर्च होने थे लेकिन पिछले करीब सवा साल से यह कार्ययोजना सरकार के पास ही है। न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों के रिक्त पदों के संबंध में लंबे समय से यह सुझाव दिया जा रहा है कि ये रिक्तियां होने से करीब छह महीने पहले ही इनके लिये भर्ती की प्रक्रिया शुरू की जानी चाहिए ताकि वास्तव में पद रिक्त होने की स्थिति में समय पर इन्हें भरा जा सके। लेकिन देखा यह जा रहा है कि न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों के पदों पर भर्ती की प्रक्रिया में अपेक्षित तेजी नजर नहीं आती ।
सरकार अगर वास्तव में न्याय पालिका में सुधार के प्रति गंभीर है तो उसे सबसे पहले अदालतों के कंम्प्यूटरीकरण और वीडियो कानफ्रेंसिंग की सुविधा आदि के बारे में न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा पेश कार्ययोजना को यथाशीघ्र स्वीकृति प्रदान करनी होगी। अब देखना यह है कि हाल ही में संपन्न मुख्य न्यायाधीशों और मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन से सामने आये मुद्दों पर अमल के प्रति सरकार कितनी गंभीरता से और कितनी तत्परता से कदम उठाती है।

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