उम्र बनाम अपराध
सुधार संग दंड भय भी जरूरीआखिरकार केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भी किशोर न्याय अधिनियम में उस संशोधन को मंजूरी दे दी हैए जिसके मुताबिक जघन्य अपराधों में लिप्त 16 से 18 वर्ष आयु वर्ग के किशारों के विरुद्ध वयस्क अपराधियों की तरह भारतीय दंड संहिता के तहत मुकदमा चलाया जा सकेगा। ऐसा करने की मांग पुरानी थीए जिसने निर्भया कांड के नाम से चर्चित बर्बर सामूहिक बलात्कार कांड के बाद जोर पकड़ लिया। देश की राजधानी दिल्ली में चलती बस में एक पेरा मेडिकल छात्रा के साथ हुए उस सामूहिक बलात्कार कांड में एक 17 साल का नाबालिग भी शामिल था। गवाहों और सबूतों से उजागर हुआ कि उस नाबालिग का आचरण सबसे बर्बर थाए जिसके चलते उस छात्रा की अंततरू मौत भी हो गयीए लेकिन किशोर न्याय अधिनियम से हासिल संरक्षण के कारण उसे बहुत मामूली सजा ही सुनायी जा सकी। बेशक वयस्कता की दहलीज पर खड़े किशोरों द्वारा जघन्य अपराध को अंजाम दिये जाने का न तो वह पहला मामला था और न ही अंतिमए लेकिन किशोर न्याय अधिनियम में संशोधन का श्रेय निर्भया कांड को ही जाता हैए क्योंकि उसने पूरे देश के जनमानस को उद्वेलित कर दिया था। हालांकि तब न्यायमूर्ति जेण् एसण् वर्मा की अध्यक्षता में गठित समिति ने देश में सामाजिक संरचना का हवाला देते हुए किशोर आयु सीमा में संशोधन की सिफारिश करने से इनकार कर दिया था। बाद में संसद की स्थायी समिति ने भी किशोर आयु सीमा को घटा कर 18 से 16 वर्ष किये जाने के सुझाव को खारिज कर दियाए लेकिन अंततरू केंद्रीय मंत्रिमंडल ने उपरोक्त संशोधन को मंजूरी दे दी हैए तो उसका कारण इस मुद्दे पर मुखर होता जनमत भी है। उल्लेखनीय है कि अमेरिका और ब्रिटेन सरीखे देशों में भी हत्या और बलात्कार सरीखे अपराधों में संलिप्त किशोरों के विरुद्ध वयस्कों की तरह ही मुकदमा चलाया जाता है। फिर हमारे यहां तो इस बीच आये तमाम आंकड़ों से संकेत मिलते हैं कि महिलाओं के उत्पीड़न समेत जघन्य अपराधों में नाबालिगों की संलिप्तता लगातार बढ़ रही है। यह भी कि 16 से 18 आयु वर्ग के ऐसे नाबालिग किशोर न्याय अधिनियम में हासिल कवच से भी अपराधों के प्रति प्रेरित होते हैं। आश्चर्य नहीं होगा अगर इस कानूनी कवच के चलते किशारों के जरिये जघन्य अपराधों को अंजाम देने का सुनियोजित सिलसिला भी चल रहा हो।
संभवतरू ऐसी ही परिस्थितियों के मद्देनजर पिछले दिनों केंद्रीय महिला एवं बाल मंत्री मेनका गांधी ने संकेत दे दिया था कि सरकार 16 से 18 आयु वर्ग के किशोरों के हत्या.बलात्कार सरीखे जघन्य अपराधों में संलिप्त पाये जाने पर उनके विरुद्ध वयस्कों की तरह ही भारतीय दंड संहिता के तहत मुकदमा चलाये जाने के प्रति गंभीर है। केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा किशोर न्याय अधिनियम में संशोधन को मंजूरी उसी गंभीरता का प्रमाण है। बेशक केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस संशोधन में भी इस बात का ध्यान रखा है कि किशोर अकारण ही कड़े कानूनी दंड का शिकार न हो जाये। इसलिए जघन्य अपराधों में संलिप्त 16 से 18 आयु वर्ग के किशोर के विरुद्ध वयस्क की तरह भारतीय दंड संहिता के तहत मुकदमा चलाये जाने का फैसला भी किशोर न्याय बोर्ड ही इस आधार पर लेगा कि अपराध किशोर मानसिकता के तहत किया गया है या फिर वयस्क मानसिकता के तहत। निश्चय ही यह निर्धारण बहुत आसान नहीं होगाए लेकिन परिस्थितिवश या अज्ञानतावश अपराध कर बैठने वाले किशोरों को उचित संरक्षण भी उतना ही जरूरी हैए जितना अपराधी मानसिकता वाले किशाेरों को कठोर दंड। नहीं भूलना चाहिए कि हमारे दंड विधान के मूल में सुधार प्रक्रिया प्रमुख है। अनेक अध्ययनों से पता चलता है कि जेल जाने के बाद किशोरों के पेशेवर अपराधी बनने की आशंकाएं बढ़ जाती हैं। कोई भी सही सोच वाला शांतिप्रिय नागरिक इस संशोधन का स्वागत ही करेगाए लेकिन अपनी सामाजिक परिस्थितियों के मद्देनजर हमें किशोर संरक्षण एवं सुधार के लिए भी बहुत कुछ करने की जरूरत है। क्या यह आंकड़ा हमारी प्रतिबद्धता और व्यवस्था को ही कठघरे में खड़ा नहीं करता कि देश में कुल 815 किशोर सुधार गृह ही हैंए जिनमें 35 हजार किशोरों को ही रखने की व्यवस्था हैए लेकिन किशोर अपराधियों की संख्या 17 लाख के आसपास है। उम्मीद की जानी चाहिए कि जब यह संशोधन संसद में पेश किया जायेगाए तब इसके तमाम पहलुओं के मद्देनजर बहस भी होगी और सरकार कुछ ठोस कदम उठाने को प्रेरित भी होगी।
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