नई सोच से उभरे समग्र विकास के अभिनव सुझाव
नरेंद्र मोदी ने अभिनव सोच सामने रखी। नतीजतनए ऐसे व्यावहारिक सुझाव आए हैंए जिन पर अमल होने से देश की सूरत बदल सकती है। प्रधानमंत्री ने केंद्रीय सचिवों को निर्देश दिया था कि वे उन स्थानों का दौरा करेंए जहां उनकी पहली नियुक्ति हुई थी। वहां देखें कि गुजरे वर्षों में वहां क्या बदला हैघ् स्थितियां बेहतर नहीं हुईंए तो क्योंघ् अब सुधार के लिए क्या किया जा सकता हैघ्
46 सचिव विगत जनवरी में संबंधित स्थानों पर गए और हाल में उन्होंने अपनी रिपोर्ट पेश की है। इस रिपोर्ट से खासकर पिछड़े क्षेत्रों में बुनियादी ढांचेए स्वास्थ्य सुविधाओंए रोजगारए शिक्षा आदि की ठोस सूरत.ए.हाल सामने आई है। पहली पोस्टिंग के बाद केंद्र में सचिव बनने के क्रम में अधिकारी प्रशासन की सीमाओं और संभावनाओं से बेहतर परिचित हो चुके हैं। अतः समस्याओं के जो समाधान उन्होंने बताएए वे यथार्थवादी हैं। मसलनए यह जाना पहचाना तथ्य है कि डॉक्टर गांवों में नहीं जाना चाहते। तो सुझाव दिया गया है कि सेवारत और रिटायर्ड डॉक्टरों का एक राष्ट्रीय पूल ;समुच्चयद्ध बनाया जाएए जिनकी अल्प अवधि के लिए आदिवासीध्ग्रामीण इलाकों में पोस्टिंग हो। एक निश्चित समयसीमा के बाद उनके लिए अपनी पुरानी जगह पर लौटने का विकल्प खुला रहे। इसके साथ ही सब.डिवीजन स्तर पर ऐसा सुविधाजनक बुनियादी ढांचा तैयार किया जाएए जिससे ऐसे पढ़े.लिखे कर्मी वहीं नियुक्ति लेने के लिए प्रेरित हो सकें। इसी तरह यह सुझाव आया है कि सर्वशिक्षा अभियान और राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन जैसी योजनाओं को चलाने वाले मंत्रालयों को संसाधनों का समन्वित रूप से उपयोग करना चाहिए।
उद्देश्य हर गांव में कम.से.कम एक ऐसे सरकारी कर्मचारी की तैनाती हो जो वहां सभी सरकारी विभागोंध्मंत्रालयों के प्रतिनिधि के रूप में काम करे। इससे संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल संभव होगाए योजनाओं में तालमेल बनेगा और उत्तरदायित्व तय होगा। इसी तरह मनरेगा में कौशल विकास का काम भी शामिल कर दिया जाए तो नेशनल स्किल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन द्वारा उच्च गुणवत्ता के प्रशिक्षण देने के लिए बेहतर जमीन तैयार होगी। स्पष्टतः योजनाओं को घिसे.पिटे अंदाज में चलाने के बजाय उनमें नई सोच जोड़ने और उनसे बेहतर परिणाम प्राप्त करने की दिशा में एक प्रभावी पहल हुई है। लीक से हटकर सोचने का यही लाभ होता है। संतोष की बात है कि भारत ने अब यह रास्ता अपना लिया है।
नरेंद्र मोदी ने अभिनव सोच सामने रखी। नतीजतनए ऐसे व्यावहारिक सुझाव आए हैंए जिन पर अमल होने से देश की सूरत बदल सकती है। प्रधानमंत्री ने केंद्रीय सचिवों को निर्देश दिया था कि वे उन स्थानों का दौरा करेंए जहां उनकी पहली नियुक्ति हुई थी। वहां देखें कि गुजरे वर्षों में वहां क्या बदला हैघ् स्थितियां बेहतर नहीं हुईंए तो क्योंघ् अब सुधार के लिए क्या किया जा सकता हैघ्
46 सचिव विगत जनवरी में संबंधित स्थानों पर गए और हाल में उन्होंने अपनी रिपोर्ट पेश की है। इस रिपोर्ट से खासकर पिछड़े क्षेत्रों में बुनियादी ढांचेए स्वास्थ्य सुविधाओंए रोजगारए शिक्षा आदि की ठोस सूरत.ए.हाल सामने आई है। पहली पोस्टिंग के बाद केंद्र में सचिव बनने के क्रम में अधिकारी प्रशासन की सीमाओं और संभावनाओं से बेहतर परिचित हो चुके हैं। अतः समस्याओं के जो समाधान उन्होंने बताएए वे यथार्थवादी हैं। मसलनए यह जाना पहचाना तथ्य है कि डॉक्टर गांवों में नहीं जाना चाहते। तो सुझाव दिया गया है कि सेवारत और रिटायर्ड डॉक्टरों का एक राष्ट्रीय पूल ;समुच्चयद्ध बनाया जाएए जिनकी अल्प अवधि के लिए आदिवासीध्ग्रामीण इलाकों में पोस्टिंग हो। एक निश्चित समयसीमा के बाद उनके लिए अपनी पुरानी जगह पर लौटने का विकल्प खुला रहे। इसके साथ ही सब.डिवीजन स्तर पर ऐसा सुविधाजनक बुनियादी ढांचा तैयार किया जाएए जिससे ऐसे पढ़े.लिखे कर्मी वहीं नियुक्ति लेने के लिए प्रेरित हो सकें। इसी तरह यह सुझाव आया है कि सर्वशिक्षा अभियान और राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन जैसी योजनाओं को चलाने वाले मंत्रालयों को संसाधनों का समन्वित रूप से उपयोग करना चाहिए।
उद्देश्य हर गांव में कम.से.कम एक ऐसे सरकारी कर्मचारी की तैनाती हो जो वहां सभी सरकारी विभागोंध्मंत्रालयों के प्रतिनिधि के रूप में काम करे। इससे संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल संभव होगाए योजनाओं में तालमेल बनेगा और उत्तरदायित्व तय होगा। इसी तरह मनरेगा में कौशल विकास का काम भी शामिल कर दिया जाए तो नेशनल स्किल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन द्वारा उच्च गुणवत्ता के प्रशिक्षण देने के लिए बेहतर जमीन तैयार होगी। स्पष्टतः योजनाओं को घिसे.पिटे अंदाज में चलाने के बजाय उनमें नई सोच जोड़ने और उनसे बेहतर परिणाम प्राप्त करने की दिशा में एक प्रभावी पहल हुई है। लीक से हटकर सोचने का यही लाभ होता है। संतोष की बात है कि भारत ने अब यह रास्ता अपना लिया है।
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