खफा मतदाता, बेबस राहुल गांधी
केंद्र में नरेंद्र मोदी के राज में राहुल गांधी अपने संसदीय क्षेत्र को ही भूल गये। यह बात क्षेत्रीय जनता को अच्छी नहीं लगी तो उसने हमारा सांसद लापता है, के पोस्टर जगह−जगह चिपका दिये। कांग्रेस ने भले ही राहुल गांधी के लापता होने के पोस्टरों को विपक्ष की साजिश बता कर अपने दिल को बहला लिया हो, परंतु भीतर खाने से कांग्रेस भी राहुल की गैरमौजूदगी को लेकर चिंतित नजर आ रही है। अगर राहुल का यही रवैया रहा तो आने वाले समय में कांग्रेस के लिये 'अजेय' अमेठी शर्मिंदगी का कारण बन सकती है। बात इतनी भर नहीं है कि राहुल अपने संसदीय क्षेत्र में नहीं पधार रहे हैं, कई दशक से वीआईपी क्षेत्र का रुतबा रखने वाले अमेठी−रायबरेली जिलों में केंद्र के बदले निजाम के साथ ही विकास की धार भी कुंद होने लगी है। बीते सात−आठ महीने से बंद होते उद्योग, निर्माणाधीन सड़कों पर पसरा सन्नाटा व एम्स जैसे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट में पत्ता न खड़कना यह बताने के लिए काफी था कि दिल्ली की सियासी बिसात बदलने से अब यहां के नुमाइंदों की पहले जैसी हैसियत नहीं रही। हालात यहां तक हो गये कि सांसद राहुल गांधी के ड्रीम प्रोजेक्ट जगदीशपुर के मेगा फूड पार्क को हरी झंडी दिखाने से ही इंकार कर दिया। गौरतलब है कि अमेठी के सांसद राहुल गांधी ने यूपीए सरकार के अंतिम दिनों में अपने संसदीय क्षेत्र के जगदीशपुर में 07 अक्तूबर 2013 को मेगा फूड पार्क की बुनियाद का पत्थर रखा था। 200 करोड़ रुपये से बनने वाले मेगा फूड पार्क में फूड प्रोसेसिंग की कई इकाइयां लगनी थीं, जिनसे अमेठी के साथ ही प्रदेश के करीब 40 हजार किसान लाभान्वित होते। इसमें करीब 25 हजार लोगों को सीधे व इतने ही बेरोजगारों को परोक्ष रूप से काम मिलता। कांग्रेसियों का आरोप है कि यूपी में करीब 25 हजार युवाओं के लिए रोजगार और बड़े निवेश का साधन बनने वाली इस योजना के तहत राहुल गांधी की लोकसभा सीट अमेठी में आदित्य बिरला ग्रुप फूड पार्क लगाने वाला था। 200 करोड़ रुपये की इस योजना की जगदीशपुर में अक्टूबर 2013 में राहुल ने आधारशिला रखी थी। यूपीए सरकार जाने के बाद से ही पार्क के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा था। आखिर केंद्र सरकार ने प्रस्तावित मेगा फूड पार्क को निरस्त ही कर दिया।
उधर, अमेठी के ही कुछ जागरूक नागरिकों का कहना है कि फूड पार्क न तो बनना था और न ही बना। यह मात्र कांग्रेस का चुनावी स्टैंड था। अगर राहुल गांधी को फूड पार्क का निर्माण कराना ही होता तो इसकी बुनियाद काफी पहले पड़ चुकी होती। फिर भी, मेगा फूड पार्क के निरस्त होने को लेकर स्थानीय लोगों में नाराजगी है। उनका कहना है कि पहले ही पार्क के मसले पर सियासत हुई थी अब भी हो रही है, लेकिन विकास पर सियासत नहीं होनी चाहिए। मेगा फूड पार्क बनने से क्षेत्र के लोगों को रोजगार मिलता। किसान लाभांन्वित होता। केंद्र सरकार ने मेगा फूड पार्क को निरस्त कर अमेठी की जनता के साथ नाइंसाफी की है। फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्रीज मिनिस्ट्री के डायरेक्टर एनके गयागी का कहना है कि इस योजना के लिए 50 एकड़ जमीन और उसके औद्योगिक इस्तेमाल की इजाजत होनी चाहिए थी जो कंपनी के पास नहीं है। शर्तें पूरी न होने पर इंटर मिनिस्ट्रीयल अप्रूवल कमिटी ने 30 जून 2014 की मीटिंग में योजना को मिली इजाजत रद्द करने का फैसला किया। स्टेट इंडस्ट्रीयल डेवलपमेंट एसोसिएशन (सीडा) के चेयरमैन राजेश मिश्रा कहते हैं कि मेगा फूड पार्क से क्षेत्र के अन्य उद्योग−धंधे फलते−फूलते। अमेठी के लिए यह बड़ा नुकसान है। मेगा फूड पार्क के निरस्त होने से विकास पर ब्रेक लगेगा। अमेठी कांग्रेस के जिलाध्यक्ष योगेन्द्र मिश्रा कहते हैं कि इस फूड पार्क से अमेठी ही नहीं आसपास के जिलों के किसानों की दशा बदल जाती। यह अमेठी की जनता के साथ धोखा है। वहीं जगदीशपुर के विधायक राधेश्याम को इस बात का दुःख है कि शक्तिमान मेगाफूड पार्क को बंद करने का निर्णय राजनैतिक दुर्भावना से प्रेरित रहा। खैर, यह पहला मौका नहीं है जब अमेठी के साथ ऐसा बुरा बर्ताव हुआ है। कहा तो यह जाता है कि अमेठी में जो भी विकास कार्य हुए हैं उसका श्रेय पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को ही जाता है। उन्हीं के प्रधानमंत्रित्व काल में जगदीशपुर औद्योगिक क्षेत्र बना था। यहां करीब 450 छोटे−बड़े कल−कारखाने लगे थे। इंडस्ट्री के लिहाज से लोग इसकी तुलना कानपुर से करते थे। रात−दिन इन फैक्ट्रीयों में रौनक रहती थी, लेकिन कांग्रेस का जनाधार खिसकने के साथ अमेठी के भी बुरे दिनों की शुरूआत हो गई। कांग्रेस ने पहले उत्तर प्रदेश में अपनी ताकत खोई। यूपी में कांग्रेस के कमजोर पड़ने के बाद भाजपा, बसपा और सपा चाहे किसी भी सरकार रही हो उसने अमेठी और रायबरेली की ओर इसलिये ध्यान नहीं दिया क्योंकि शायद यहां की जनता के माथे पर लिख दिया गया था कि वह गांधी परिवार की अंध भक्त है। कांग्रेस जब केन्द्र में कमजोर पड़ी तो रही सही कसर भी पूरी हो गई। केंद्र में सत्ता में रहते कांग्रेस राज्य सरकार पर थोड़ा−बहुत दबाव बना लेती थी, अब तो वह ऐसा भी नहीं कर पाती है। जगदीशपुर में अब चंद फैक्ट्रीयों की चिमनियां ही धुआं उगलती हैं, बाकी तो खामोश हो चुकी हैं। चालू फैक्ट्रियों की संख्या उंगली पर गिने जाने लायक रह गई है, वह भी मरणासन स्थिति में अंतिम सांसें गिर रही हैं। बंद होने वाली फैक्ट्रीयों में एग्रो पेपर मिल, आरिफ सीमेंट, मारवा सीमेंट, सोना ब्रेड समेत कई मंझोली व छोटी फैक्ट्रीयां हैं। राहुल गांधी ही नहीं, कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी का संसदीय क्षेत्र रायबरेली भी उनके सत्ता से बेदखल होने का दर्द झेल रहा है। औद्योगिक रूप से तो अमेठी रायबरेली त्राहिमाम कर ही रहा है। वहीं कई सामाजिक और स्वास्थ्य योजनाओं पर भी काम नहीं हो पा रहा है। सोनिया गांधी रायबरेली में एम्स की सेटेलाइट शाखा खोलना चाहती थीं, इसके लिए यूपीएसआईडीसी कौहार में 25−30 एकड़ भूमि सशुल्क देने का प्रस्ताव केंद्र को भेजा गया था। परंतु आज तक जिला प्रशासन के प्रस्ताव पर केंद्र की ओर से कोई न तो धन आवंटित किया गया और न ही निःशुल्क भूमि देने का अनुरोध किया गया। इसी तरह यहां सैनिक स्कूल खोले जाने की भी योजना बनी थी। इस योजना के लिए भी केंद्र सरकार ने जिला प्रशासन से भूमि आवंटित करने का अनुरोध किया था। जिला प्रशासन ने यूपीएसआईडीसी कौहार में वर्तमान दर पर 50 एकड़ भूमि मुहैया कराने का आश्वासन दिया। बावजूद इसके न तो केंद्र से धन मिला न ही भूमि आवंटित करने का प्रस्ताव।
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