Thursday, 9 July 2015

दुलत के खुलासों से उपजे सवाल

दुलत के खुलासों से उपजे सवाल

पूर्व रॉ चीफ अमरजीत सिंह दुलत ने अपनी किताब श्कश्मीररू द वाजपेयी इयर्सश् के प्रमोशन के दौरान दिए साक्षात्कारों में जो बातें कही हैं वे न केवल चौंकाने वाली हैं बल्कि बहुत सारे सवाल भी उठाती हैं। दुलत रिसर्च एंड एनालिसिस विंग ;रॉद्ध के चीफ तो रहे ही हैंए वे इंटेलिजेंस ब्यूरो ;आईबीद्ध में भी जिम्मेदार पदों पर रहे हैं।

इसके अलावा वे वाजपेयी सरकार के दौरान पीएमओ में कश्मीर मामलों के सलाहकार रहे और उस दौरान कई अहम मामलों से निपटने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। जाहिर है कि न तो इस किताब को कोई भी सामान्य किताब कहकर नजरअंदाज किया जा सकता है और न ही दुलत के बयानों को हंसी में उड़ाया जा सकता है।

बेशकए उनकी हर बात को स्थापित सत्य के रूप में नहीं लिया जा सकता। उनकी कई बातें आरोप की शक्ल में हैं जिनका संबंधित पक्ष खंडन भी कर चुके हैं। लेकिन इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि दुलत की कई बातें उस दौर में घटित महत्वपूर्ण घटनाओं पर नई रोशनी डालती हैं। उदारण के लिए कंधार विमान अपहरण कांड पर जो बात कहने से सभी बचते रहे थे उसे दुलत ने पूरी बेबाकी से कह दिया कि तत्कालीन सरकार सही समय पर सही फैसला करने में नाकाम रही जिससे मामला बिगड़ता चला गया। इस बयान के बाद भी वाजपेयी सरकार में मंत्री रहे वरिष्ठ बीजेपी नेता यशवंत सिन्हा ने जिस तरह से यह कहते हुए विपक्ष को भी लपेटने की कोशिश की कि श्हमने उस वक्त सबसे बात की थीए इसलिए हमारे फैसले में सभी शामिल हैंश् वह उनके पक्ष को और हास्यास्पद बनाता है। बातचीत जिससे भी की होए उपयुक्त फैसला लेने की जिम्मेदारी तत्कालीन सरकार की ही थी और अगर वह किसी भी कारण से इसमें नाकाम रही तो सभी संबद्ध लोगों को उसकी पूरी जिम्मेदारी स्वीकार करनी चाहिए।

लेकिन दुलत के खुलासों का सबसे अहम हिस्सा कश्मीरी आतंकवादियों और अलगाववादियों से संबंधित है। उन्होंने बताया है कि कैसे तत्कालीन मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने हिजबुल चीफ सलाहुद्दीन के बेटे को मेडिकल कॉलेज में दाखिला दिलवायाए कैसे एक उग्रवादी को खुद उन्होंने ;दुलत नेद्ध फारूक अब्दुल्ला से कह कर एमएलसी बनवाया और कैसे वहां सभी अलगाववादी और आतंकवादी समूहों के नेताओं को पैसे बांटे जाते हैं।

एक बार फिर दोहराना जरूरी है कि दुलत के इन तमाम खुलासों को फिलहाल अंतिम सच नहीं माना जा सकताए लेकिन अगर इसमें जरा भी सचाई है तो सवाल यह उठता है कि जब सभी पक्षों में ऐसा भाईचारा है और सभी एक.दूसरे का इतना ख्याल रख रहे हैं तो फिर कश्मीर में आखिर समस्या क्या है और क्यों हैघ् क्यों वहां इतना खून.खराबा हो रहा हैघ् क्यों वहां के नागरिकों को सामान्य लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए भी तरसाए रखा जा रहा हैघ् देर से ही सहीए पर जब ये सवाल उठे हैं तो इनकी अनदेखी नहीं की जा सकती। अगर किसी भी स्तर पर आतंकवाद और अलगाववाद को लेकर ढीला रवैया दिख रहा हो तो उसे तुरंत ठीक किया जाना चाहिए।
SOURCE : http://navbharattimes.indiatimes.com/

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