Thursday, 2 July 2015

दक्षेस की जरूरत बनते आर्थिक रिश्ते

दक्षेस की जरूरत बनते आर्थिक रिश्ते

नेपाल की राजधानी काठमांडू में 2003 में सम्पन्न हुई दक्षेस बैठक में मौजूद राष्ट्राध्यक्षों ने अपने संयुक्त वक्तव्य में कहा कि दक्षिण एशिया को और अधिक समृद्ध बनाने की साझी आकांक्षा को मूर्त रूप देने के लिए दक्षेस देशों के नेता एक चरणबद्ध और सुनियोजित प्रक्रिया अपनाएंगे ताकि आगे चलकर दक्षिण एशिया आर्थिक संघ बनाया जा सके। आसियान संघ के देशों की अपेक्षा दक्षिण एशियाई देशों के साथ भारत का आर्थिक एकीकरण धीमा रहा है क्योंकि आसियान देशों के साथ भारत ने न सिर्फ वस्तु और सेवा क्षेत्रों में मुक्त व्यापार संधि पहले ही कर रखी है बल्कि इससे भी आगे जाकर जापान और कोरिया से बृहद आर्थिक सहयोग संधि की है। दक्षेस सम्मेलन में निर्णय लेने के बावजूद पाकिस्तान ने अपने मुल्क में भारत के निर्यात को पंगु बनाने वाली रोकें लगा रखी हैं ।

पाकिस्तान ने खासतौर पर केवल दक्षेस देशों के काम आने वाले एक उपग्रह स्थापित करने के भारतीय प्रस्ताव का पुरजोर विरोध किया था। ये बात अलग है कि अन्य दक्षेस सदस्यों द्वारा भारतीय पेशकश के प्रति दिखाए गए उत्साह के चलते पाकिस्तान को भी अंत में इस पर राजी होना पड़ा। जिन दो अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में क्षेत्रीय सहयोग को तेजी देने के लिए सहमति बनी हैए वे हैं परस्पर संपर्क मजबूत बनाना और ऊर्जा सहयोगए जिसे बिजली ग्रिडों को जोड़कर अंजाम दिया जाएगा। काठमांडू में 2014 में आयोजित हुए दक्षेस सम्मलेन में अनेक विषयों में क्षेत्रीय सहयोग को और ज्यादा विस्तार देने की बात कही गयी थीए जिनमें आपसी संपर्क और ऊर्जा से लेकर आतंकवाद और दूरसंचार के विषय भी शामिल हैं। जाहिर है कि पाकिस्तान की मंशा इन क्षेत्रों में सहयोग को और अधिक बढ़ावा देने में कतई नहीं है। इसने भारत और अफगानिस्तान के बीच सड़क संपर्क मार्ग में अड़ंगा लगा दिया है। बिजली की भारी किल्लत झेलने के बावजूद पाकिस्तान ने भारत द्वारा उसे बिजली सप्लाई करने की पेशकश को भी ठुकरा दिया है।
भारत ने आगे बढ़कर ऐसे कदम उठाए हैंए जिसमें पाकिस्तान को साथ लिए बिना क्षेत्रीय देशों से सहयोग को बढ़ावा मिलेगा। अफगानिस्तान तक पहुंच करने के लिए अब ईरान के चाहबहार बंदरगाह का उपयोग करने की योजना बनाई गई है। हाल ही में भूटान में भारतए नेपालए भूटान और बांग्लादेश के परिवहन मंत्रियों की बैठक सड़क परिवहन संधि करने के महत्वपूर्ण निर्णय के साथ संपन्न हुईए जिसमें ऐसा तंत्र बनाने का निर्णय लिया गया है ताकि इन देशों के बीच यात्रियोंए निजी और मालवाहक वाहनों की आवाजाही बिना किसी रूकावट की जा सके। भारत के परिवहन मंत्री नीतिन गडकरी ने कहा कि यह संधि हमारे देशों के बीच सभी प्रकार के वाहनों को निर्बाध चलने की इजाजत देगी। इसके लिए भारत और पड़ोसी देशों ने एक बृहद परियोजना की परिकल्पना की हैए जिसमें 8 बिलियन डॉलर लागत वाली 30 ऐसी सड़कों का निर्माण किया जाएगाए जिन पर चलने वाले वाहनों को सीमा पार आवाजाही का विशेष दर्जा प्राप्त होगा। आरंभिक अनुमानों के अनुसार ऐसे खास मार्ग इन देशों के बीच उप.क्षेत्रीय व्यापार को 60 प्रतिशत से अधिक बढ़ाने की क्षमता रखते हैं। यह काफी महत्वपूर्ण है कि जैसे.जैसे बांग्लादेश के साथ हमारे रिश्तों में सुधार होता जाएगाए वैसे.वैसे हमारे अपने उत्तर.पूर्व के राज्यों के साथ बांग्लादेश से होकर गुजरने वाले रास्तों की बदौलत भूतल और नौवहन सम्पर्क बनाने के प्रयासों की संभावना काफी उज्ज्वल होती जाएगी।
पड़ोसी देशों के साथ हमारे ऊर्जा सहयोग की संभावनाएं अपार हैं। पिछले एक साल के दौरान प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री द्वारा की गई नेपाल की यात्राओं ने ऐसा माहौल बनाने में मदद की हैए जिसमें वहां बड़े पैमाने पर मौजूद पन.बिजली बनाने की क्षमता का दोहन किया जा सके। भले ही नेपाल में 8300 मेगावाट पन.बिजली बनाने की संभवानाएं हैंए लेकिन फिलहाल वहां केवल 600 मेगावाट बिजली ही बनाई जा रही है। हालांकि भारत के निजी क्षेत्र की बिजली निर्माता कंपनियां वहां की सरकार के साथ अपने स्तर पर 1100 मेगावाट बिजली बनाने के समझौते करने को अग्रसर हैंए परंतु हो सकता है कि नेपाल में चल रही राजनीतिक अस्थिरता के कारण इस काम में देरी हो जाए। यह भी संभव है कि इसके चलते अंतर.सरकारी परियोजनाएं जैसे कि 5600 मेगावाट क्षमता वाली पंचेश्वर बहु.उद्देशीय योजना भी देरी से शुरू हो पाए। भारत और नेपाल के बीच अंतरराष्ट्रीय ग्रिड संपर्क को विस्तार देने का काम शुरू होने को है। ठीक इसी वक्त भूटान में बन रही पन.बिजली परियोजनाओं को जल्दी से पूरा करने पर जोर दिया जा रहा है ताकि वर्ष 2030 तक 30000 मेगावाट बिजली बनाने का लक्ष्य पूरा किया जा सके।
अपने पूर्वी पड़ोसी देशों जैसे कि नेपालए भूटान और बांग्लादेश के साथ बिजली ग्रिड संपर्क बनाने की भारत की चेष्टा का मार्ग अब प्रशस्त हो चला हैए क्योंकि त्रिपुरा एवं पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के बीच बिजली सप्लाई करने वाली लाइनों का काम सिरे चढ़ चुका है और इस साल के अंत तक भारत बांग्लादेश को 1100 मेगावाट बिजली निर्यात कर सकेगा। इसके अलावा बांग्लादेश में 1ण्2 बिलियन डॉलर की लागत वाले 1320 मेगावाट क्षमता का ताप.बिजलीघर बनाने का काम पहले ही शुरू हो चुका है। यह परियोजना दोनों ओर के सरकारी उपक्रमों का संयुक्त प्रयास है। भारत के पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश में बड़े पैमाने पर पन.बिजली बनाने की संभावनाएं मौजूद हैं। राज्य सरकार लगभग 27000 मेगावाट वाली 42 पन.बिजली परियोजनाओं को बनाने के समझौते जल्द से जल्द पूरा करना चाहती है। इसके अलावा लगभग 12000 मेगावाट क्षमता वाली उपरी.सालांग पन.बिजली परियोजना बनाने का काम शुरू हो चुका है।
भारत की योजना है कि वह भूटान के साथ सड़क मार्ग के जरिए और ज्यादा संपर्क बनाने की पहले से तय हो चुकी सहमति को आगे बढ़ाए और इसी तर्ज पर म्यांमार और थाईलैण्ड के साथ दिसंबर 2015 तक समझौते को सिरे चढ़ा सके। श्रीलंका के साथ भी एक पुल और समुद्री सतह में सुरंग बनाकर सड़क मार्ग से संपर्क बनाने के प्रस्ताव पर विचार किया जा रहा है। ऐसा होने पर बंगाल की खाड़ी के मुल्कों में अंतर.एशियन सड़क और परिवहन मार्ग बनाने की महत्वाकांक्षी परियोजना पूरी हो सकेगी। भारत के तमिलनाडु राज्य के मदुरै या तूतीकोरण और श्रीलंका के अनुराधापुरा के बीच हाई.वोल्टेज डीसी करंट ग्रिड संपर्क बनाने का भी प्रस्ताव है। ऐसा होने पर हम पाएंगे कि बिस्मटेक संगठन के सदस्य देशों भारतए नेपालए भूटानए बांग्लादेशए श्रीलंकाए म्यांमार और थाईलैण्ड के बीच अंतरराष्ट्रीय बिजली ग्रिड व्यवस्था बन जाएगी।
मौजूदा हालातों में भारत सरकार को यह मानना होगा कि अपने पड़ोसियों के साथ बनने वाली कोई भी वास्तविक आर्थिक भागीदारी मुख्य तौर पर पूर्वी सीमा पर स्थित देशों और बंगाल की खाड़ी में स्थित राष्ट्रों के साथ ही बन सकती है। अरब सागर के साथ लगते मुल्कों और द्वीपीय राष्ट्रों जैसे कि मालदीवए सेशल्स और मॉरीशस के लिए दक्षेस संगठन के लिए अपनाई गई नीतियों से हटकर अलग प्रणाली विकसित किए जाने की जरूरत है। हम भले ही दक्षेस संगठन के लिए जुबानी.कलामी समर्थन देते रहें लेकिन वास्तविकता के ठोस धरातल पर यह मानना होगा कि यह मंच किसी उद्देश्यपूर्ण सहयोग की पूर्ति के लिए यथेष्ठ नतीजे नहीं मुहैया करवा सकता। अतएव बृहद क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक नई नीति उलीकनी होगी ताकि उस चुनौती का सामना किया जा सके जो चीन द्वारा बनाए जा रहे थलीय और नौवहनीय सिल्क रूट के मद्देनजर हमें मिलने वाली है।
SOURCE : http://dainiktribuneonline.com/

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