जीवन को गति देगी सुमति
जिस तरह कण.कण में भगवान हैंए ठीक उसी तरह कण.कण में जीवन भी समाया है। संगीत की स्वर.लहरियोंए पंछियों की चहचहाहटए सागर की लहरोंए पत्तों की सरसराहटए मंदिर की घंटियोंए मस्जिद की अजानए कोयल की कूकए मयूर के नयनाभिराम नृत्यए लहलहाते खेतए कृषक के मुस्कराते चेहरेए सावन की रिमझिम फुहारए इंद्रधनुषी रंगोंए बादलों की गर्जनाए बच्चे की मोहक मुस्कानए फूलों की खुशबूए बारिश की सौंधी.सौंधी महकए मां की लोरियांए पानी की गगरियांकृ यही हैं जीवन के वास्तविक उत्सव और यही है मनुष्य.मन की उत्सवमयता।
प्रकृति के अनुपम सौंदर्य में भी जीवन का विलक्षण आनंद समाहित है। जीवन एक उत्सव हैए नाचो गाओ और मुस्कराओ। जिंदादिली का नाम है जिंदगी। जीवन पुष्प हैए प्रेम उसका मधु। जिंदगी में सदा मुस्कराते रहोए फासले कम करोए दिल मिलाते रहो। जीवन एक चुनौती है। विपत्तियों से जूझकर चुनौती स्वीकार करना ही जिंदादिली हैए साहस है तथा इसी में रोमांच भी है। लाओत्से ने कहा है कि इसकी फिक्र मत करो कि रीति.रिवाज का क्या अर्थ है। रीति.रिवाज आनन्द देते हैंए बस काफी है। आनन्द का जीवन में बहुत महत्व है। होली मनाओए दीवाली मनाओए बसन्तोत्सव मनाओ। कभी दीये भी जलाओए कभी रंग.गुलाल उड़ाओ तो कभी जीवन के गीत गाओ। कभी संयम के गीत गाओ तो कभी साधना के। जिन्दगी को सहजए सरल और नैसर्गिक रहने दो। मिलनसार होना अच्छा हैए खाने.पीने के संस्कार देना अच्छा हैए मैत्री अच्छी हैए बड़ों के प्रति सम्मानभाव व्यक्त करनाकृयह सब करते हुए स्वयं की पहचान भी जरूरी है। जैसे हो वैसे ही अपने को स्वीकार करो। और इस सरलता और सहजता से ही धीरे.धीरे स्वयं की स्वयं के द्वारा पहचान हो सकेगी।अपने प्रति सकारात्मकता होनी जरूरी है। एक दिव्यदृष्टि जरूरी होती है जीवन की सफलता एवं सार्थकता के लिये। सर विलियम ब्लैकस्टोन ने लिखा हैकृरेत के एक कण में एक संसार देखनाए एक वन पुष्प में स्वर्ग देखनाए अपनी हथेली में अनन्तता को देखना और एक घंटे में शाश्वतता को देखना। सचमुच यही जीवन का वास्तविक आनन्द हैए उत्सव है।
जीवन का लक्ष्य होना चाहिएए निरंतर चलते रहोए तब तक चलते रहोए जब तक कि मंजिल न पा लो। जीवन चलायमान हैए चलता ही रहता हैए अपनी निर्बाध गति से। जीवन न तो रुकता है और न ही कभी थकता है। जीवन पानी की तरह निरंतर बहता रहता है। जीवन कभी नहीं हारता हैए उससे हम ही हार जाते हैं। चलते रहो और पीछे मुड़कर कभी न देखोए लक्ष्य शिखर की ओर रखो। इसीलिये नेपोलियन कहते हैंए जो व्यक्ति अकेले चलते हैंए वे तेजी से आगे की ओर बढ़ते हैं। जीवन एक प्रयोग हैए नित नए प्रयोग करते रहोए अनुभवों का विस्तार करो और नवजीवनए नवसृष्टि का सृजन करो। गिरकर उठना और उठकर पुनः अपने लक्ष्य की ओर चल पड़ना ही कामयाब जीवन का राज़ है।
चलना ही जीवन है। बसए चलते ही रहो क्योंकि ठहराव जीवन में नीरसताए विराम व शून्य लाता है। जीवन की गति रुकने पर सांसों के थमने का सिलसिला शुरू हो जाता है। गीता में कहा हैए व्यक्ति पृथ्वी पर अकेला ही आता है व अकेला ही जाता है। प्रगति के नाम पर आज जो कुछ हो रहा हैकृउससे मानव व्यथित हैए समाज परेशान हैए राष्ट्र चिंतित है। अपेक्षा है आज तक जो अतिक्रमण हुआ हैए स्वयं से स्वयं की दूरी बढ़ाने के जो उपक्रम हुए हैं उनसे पलट कर पुनः स्वभाव की ओर लौटने कीए स्वयं से स्वयं के साक्षात्कार की। जीवन शांति हैए सुव्यवस्था हैए समाधि है। अज्ञात की यात्रा है। विभाव से स्वभाव में लौट आने की यात्रा है। समाधि समाधानों का केन्द्र है। अतः अपनी सक्रिय ऊर्जा और जीवनी शक्ति को उपयोगी दिशा प्रदान करें। व्यक्ति जिस दिन रोना बंद कर देगाए उसी दिन से वह जीना शुरू कर देगा। यह अभिव्यक्ति थके मन और शिथिल देह के साथ उलझन से घिरे जीवन में यकायक उत्साह का संगीत गुंजायमान कर देगी। नैराश्य पर मनुष्य की विजय का सबसे बड़ा प्रमाण है आशावादिता और यही है जीत हासिल करने का उद्घोष।
आशा की ओर बढ़ना है तो पहले निराशा को रोकना होगा। मोजार्ट और बीथोवेन का संगीत होए अजंता के चित्र होंए वाल्ट व्हिटमैन की कविता होए कालिदास की भव्य कल्पनाएं होंए प्रसाद का उदात्त भाव.जगत हो३ सबमें एक आशावादिता घटित हो रही है। एक पल को कल्पना करिए कि ये सब न होतेए रंगों.रेखाओंए शब्दों.ध्वनियों का समय और सभ्यता के विस्तार में फैला इतना विशाल चंदोवा न होताए तो हम किस तरह के लोग होते! कितने मशीनीए थके और ऊबे हुए लोग! अपने खोए हुए विश्वास को तलाशने की प्रक्रिया में मानव.जाति ने जो कुछ रचा हैए उसी में उसका भविष्य है। यह विश्वास किसी एक देश और समाज का नहीं है। यह समूची मानव.नस्ल की सामूहिक विरासत है। एक व्यक्ति किसी सुंदर पथ पर एक स्वप्न देखता है और वह स्वप्न अपने डैने फैलाताए समय और देशों के पार असंख्य लोगों की जीवनी.शक्ति बन जाता है। मनुष्य में जो कुछ उदात्त हैए सुंदर हैए सार्थक और रचनामय हैए वह सब जीवन दर्शन है। यह दर्शन ऐसे ही हैं जैसे एक सुंदर पुस्तक पर सुंदरतम पंक्तियों को चित्रित कर दिया गया। ये रोज.रोज के भाव की ही केन्द्रित अभिव्यक्तियां हैं। कोई एक दिन ही उत्सव नहीं होता। वह तो सिर्फ रोज.रोज के उत्सव की याद दिलाने वाला एक सुनहरा प्रतीक होता है।
SOURCE : http://dainiktribuneonline.com/
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