बड़ी जांच के बड़े सवाल
एक और सनसनीखेज घोटाले और इससे संबंधित व्यक्तियों की रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु की जांच की जिम्मेदारी केन्द्रीय जांच ब्यूरो को मिल गयी है।
मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले से किसी न किसी रूप में संबंध रखने वाले व्यक्तियों की मृत्यु की घटनाओं की छानबीन कर रहे एक पत्रकार की रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु की घटना के बाद इस मामले ने अचानक तूल पकड़ लिया है। राजनीतिक विरोधियों के बढ़ते दबाव के सामने हथियार डालते हुए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस सारे मामले की जांच सीबीआई को सौंपने के लिये तैयार हो गये।मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की निगरानी में इस घोटाले की जांच कर रहे विशेष जांच दल और विशेष कार्य बल को सारी सामग्री अब सीबीआई को सौंपनी है। सीबीआई को 24 जुलाई को अपनी रिपोर्ट उच्चतम न्यायालय को सौंपनी है। इसके बाद ही इस जांच की न्यायालय द्वारा निगरानी के बारे में कोई निर्णय लिया जायेगा।
वैसे यह पहला मौका नहीं है जब सीबीआई को नेताओंए नौकरशाहों और बिचौलियों की कथित सांठगांठ से हुए घोटाले की जांच की जिम्मेदारी सौंपी गयी है। इससे पहलेए इस एजेन्सी को राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील बोफोर्स तोप सौदा दलाली कांडए बिहार का बहुचर्चित अरबों रुपए का चारा घोटालाए हरियाणा का प्राइमरी शिक्षक भर्ती कांडए उत्तर प्रदेश का हजारों करोड़ रुपए का खाद्यान्न घोटाला कांडए उण्प्रण् का ही एनआरएचएम के नाम से चर्चित राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन घोटाला कांड के बाद शारदा चिट फंड घोटाला कांड जैसे मामलों की जिम्मेदारी सौंपी जा चुकी है। इनके अलावाए अरबों रुपए के 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन प्रकरण और कोयला खदानों के आवंटन में हुई अनियमितताओं के मामलों की भी सीबीआई ही जांच कर रही है।
जहां तक राजनीतिक दृष्टि से बड़े घोटालों का संबंध है तो उच्चतम न्यायालय ने मई 2013 में उत्तर प्रदेश में संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजनाए अंत्योदय योजना और मध्याह्न भोजन योजना के तहत वितरित होने वाले खाद्यान्न में अरबों रुपए के घोटाले की सीबीआई जांच की निगरानी की इजाजत इलाहाबाद उच्च न्यायालय को दी थी। इसकी जांच अभी भी जारी है।
इससे पहले उच्चतम न्यायालय ने इस प्रकरण की सीबीआई जांच की निगरानी करने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 18 अप्रैल 2011 के निर्णय पर रोक लगा दी थी।
खाद्यान्न घोटाले में आरोप था कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से विभिन्न योजनाओं के तहत वितरित करने के लिये आने वाला खाद्यान्न नेपालए बांग्लादेशए दक्षिण अफ्रीका और भूटान जैसे देशों में गैरकानूनी तरीके से पहुंचा दिया गया। इस घोटाले की चपेट में उत्तर प्रदेश के 71 जिलों में से करीब 50 जिले आये और एक अनुमान के अनुसार इसमें चार सौ से अधिक प्रथम श्रेणी के अधिकारियों और आठ सौ से अधिक मध्यम श्रेणी के अधीनस्थ अधिकारियों के साथ ही करीब दस हजार व्यक्ति संलिप्त थे।
व्यापम घोटाले की तरह ही उण्प्रण् के खाद्यान्न घोटाले को व्हिसिल ब्लोअर की भूमिका में वकील विश्वनाथ चतुर्वेदी एक याचिका के माध्यम से सामने लाये थे। उत्तर प्रदेश के ही करोड़ों रुपए के एनआरएचएम घोटाले की जांच का काम भी सीबीआई के ही पास था। इस मामले में अब तक पांच व्यक्तियों की मृत्यु हो चुकी है। इस मामले में मायावती सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके बाबू राम कुशवाहा सहित कई व्यक्तियों की गिरफ्तारी हो चुकी है। इस मामले की सुनवाई गाजियाबाद की विशेष अदालत में चल रही है।
राज्य के परिवार कल्याण एवं स्वास्थ्य विभाग में हुए इस घोटाले के सामने आने के बाद अक्तूबरए 2010 में मुख्य चिकित्सा अधिकारी विनोद कुमार आर्य और फिर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डाण् बीपी सिंह की सरेआम हत्या कर दी गयी थी।
हरियाणा के वर्ष 1999.2000 के बहुचर्चित प्राइमरी शिक्षक भर्ती घोटाले की जांच भी सीबीआई ने ही की थी। इस मामले में फर्जी दस्तावेजों के सहारे 3200 से अधिक प्राइमरी शिक्षकों की भर्ती हुई थी। इस मामले में हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला और उनके पुत्र अजय चौटाला सहित 55 व्यक्तियों को दोषी ठहराने के बाद सजा सुनायी गयी थी।
अब देखना यह है कि क्या 2जी स्पेक्ट्रम और कोयला आवंटन प्रकरणों की तरह ही व्यापम घोटाले की जांच की प्रगति की निगरानी उच्चतम न्यायालय करेगा। यह भी कि इन प्रकरणों की तरह ही केन्द्रीय जांच ब्यूरो कब और कितनी तेजी से जांच शुरू करता है। यह भी देखना दिलचस्प होगा कि यदि इस मामले में लोक सेवकों की संलिप्तता सामने आयी तो सरकार उन पर मुकदमा चलाने के लिये अनमुति देने में कितना समय लेती है।
SOURCE : http://dainiktribuneonline.com/p
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