ग्रीस के आर्थिक संकट के सबक
इतिहास में यह पहला मौका है कि एक उच्च आय वाला विकसित देशए मध्यम आय वाले देशों की श्रेणी में ही नहीं आ गया बल्कि भीषण आर्थिक संकट से जूझ रहा है। 30 जूनए 2015 को ग्रीस द्वारा अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के ऋण की अदायगी देने से मना करने के साथ ही ग्रीस संकट ने एक नया मोड़ ले लिया है। दरअसल जब किसी देश की सरकार अपने कर्ज की अदायगी नहीं कर पाती है तो वो दिवालिया कहलाती है। वित्तीय संकट के समय आईएमएफए यूरोपीय केन्द्रीय बैंक और 19 सरकारों के यूरोपीय आयोग द्वारा दिए गए 270 अरब डालर के ऋण पर 1ण्8 अरब डालर की किश्त 30 जून तक उसे देनी थी। इसी महीने ग्रीस को यूरोपीय केन्द्रीय बैंक के 3ण्9 अरब डालर और लौटाने हैं। 29 जून को कटौती के मुद्दे पर कर्जदाताओं के साथ हुई ग्रीस की बातचीत असफल होने के बाद यह परिस्थिति निर्मित हुई है।
यूं तो पिछले 7.8 सालों से ग्रीस पर भारी विदेशी कर्ज और उसके कारण सरकारी खर्च में कटौती का दबाव वहां की सरकार के लिए निरंतर चिंता का विषय बना हुआ था। जनवरी 2015 में सम्पन्न ग्रीस के चुनावों में साम्यवादी नेता एलेक्सिस सिपरास की जीत ने ग्रीस ही नहींए पूरे यूरोप की आर्थिक व्यवस्था में खलबली ला दी थी। एलेक्सिस सिपरास ने इस मुद्दे पर चुनाव लड़ा था कि जीतने के बाद वो यूरो जोन के अन्य देशों द्वारा निर्देशित ग्रीस के सरकारी खर्च में किसी भी प्रकार की कटौती को स्वीकार नहीं करेंगे।ग्रीस के नये नेतृत्व का कहना है कि यूरोजोन के अन्य देशों द्वारा कटौती थोपे जाने के कारण ग्रीसवासी गरीब होते जा रहे हैं। ग्रीस के नेतृत्व का मानना है कि आईएमएफए यूरोपीय समुदाय के केन्द्रीय बैंक और यूरोपीय आयोग की तिकड़ी ने ग्रीस को बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। सत्ता संभालने के बाद सिपरास के नेतृत्व में नई सरकार ने यह कहा कि कटौती की पुरानी शर्तों को छोड़कर विदेशी उधार के सारे मसले पर दुबारा बातचीत की जाए।
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि आज ग्रीस भयंकर संकट में फंसा हुआ है। उधर ऋणदाता इस बाबत अड़े हुए हैं कि ग्रीस अपने खर्चों में कटौती को माने तो तभी उसे ऋण की अदायगी में राहत मिलेगी। दूसरी ओर ग्रीस बिना शर्त सहायता पैकेज की मांग कर रहा है। अगले हफ्ते के अंत तक ग्रीस लोकमत संग्रह के लिए तैयारी कर रहा हैए जिसमें ष्हांष् का मतलब ऊंचे कर लगाने और पेंशन में कटौती का विकल्प होगा तो दूसरी ओर ष्नष् का मतलब है कर्जदाताओं से बेहतर शर्तों पर बात करने का विकल्प। ग्रीस का साम्यवादी नेतृत्व दूसरे विकल्प यानी ष्नष् का समर्थक है।
यदि ग्रीस की जनता ऊंचे कर लगाने और कटौती के प्रस्तावों के विरोध में मत देती है तो इसका मतलब यह होगा कि ग्रीस यूरो जोन में नहीं रहना चाहता। ऐसी सूरत में ऋणदाता तिकड़ी ;आईएमएफए यूरोपीय केन्द्रीय बैंक और यूरोपीय आयोगद्ध ग्रीस को दिवालिया भी घोषित कर सकती है।
देखा जाए तो ग्रीस के इस संकट की शुरुआत अभी की नहीं है। माना जाता है कि वर्ष 2004 में संपन्न एथेंस ओलंपिक के आयोजन पर अनाप.शनाप खर्चए पिछली सरकारों की भ्रष्टाचार में संलिप्तता और उसके बाद 2007.08 में भयावह यूरोपीय मंदी समेत कई कारण हैंए जिन्होंने ग्रीस को दिवालियेपन के कगार पर पहुंचा दिया है। लेकिन ग्रीस अकेला ऐसा देश नहीं है जो आर्थिक संकटों से गुजर रहा हो। ग्रीस के अलावा साईप्रसए आयरलैंडए इटलीए पुर्तगालए स्पेन समेत कई देश आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं।
गौरतलब है कि आर्थिक संकट से जूझ रहे यूरोपीय देशों को राहत देने के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोषए यूरोपीय केन्द्रीय बैंक और यूरोपीय आयोग इत्यादि संस्थाओं ने सहायता पैकेज देने शुरू किए। जहां तक ग्रीस का सवाल हैए इससे पहले वर्ष 2010 और वर्ष 2012 में ग्रीस को सहायता पैकेज दिए गएए लेकिन इस सारी प्रक्रिया में उल्लेखनीय बात यह है कि इन सहायता पैकेजों का इस्तेमाल पुराने कर्जे चुकाने पर ही हो गया और मात्र 10 प्रतिशत भी ग्रीस की जनता तक नहीं पहुंचा।
लेकिन पिछले 5 सालों में ग्रीस की जीडीपी 25 प्रतिशत कम हो गई है और युवा बेरोजगारी आज 60 प्रतिशत तक पहुंच गई है। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि कर्जदाताओं ने ग्रीस पर कटौतियों और टैक्स लगाने की सख्त शर्तें भी साथ ही थोप दीं। अभी भी कर्जदाता तिकड़ी की यह मांग है कि वर्ष 2018 तक ग्रीस प्राथमिक बजट अधिशेष को 3ण्5 प्रतिशत तक ले जायेगा।
इन तमाम शर्तों का असर यह हो सकता है कि पहले से ही मंदी की चपेट में आया ग्रीस और अधिक संकट में आ जाए। ऐसे में ग्रीस की सरकार और अधिक कटौतियों को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। इसीलिए ग्रीस की सरकार कर्जदाताओं के समक्ष यह विकल्प दे रही है कि वे ग्रीस को बिना कटौती की शर्तों के एक और सहायता पैकेज देकर इस आर्थिक संकट से निजात पाने का मौका दें। ऐसा न करने पर ग्रीस सरकार अपनी जनता को दो विकल्प देते हुए जनमत संग्रह करा रही है। यूरोपीय समुदाय के अन्य देश हालांकि ग्रीस पर कटौतियों को स्वीकार करने का दबाव बनाए हुए हैं लेकिन सामान्य तौर पर यूरोपीय समुदाय के नेता जनमत संग्रह भी नहीं होने देना चाहते।
फ्रांसए जर्मनी और इटली ने ग्रीस को चेतावनी दी है कि यदि उनकी शर्तों को नहीं माना जायेगा तो ग्रीस अपनी यूरो जोन की सदस्यता खो देगा पर उनको भी मालूम है कि यदि ग्रीस की जनता कटौती के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करती है तो ऐसे में यूरो जोन का भविष्य भी संकट में आ जायेगा।
ग्रीस की जनता के सामने अत्यंत दुविधा की स्थिति है। यदि कटौतियों के प्रस्तावों को माना जाए तो ग्रीस जो पहले ही पिछले 5 सालों में आमदनी घटने और भारी युवा बेरोजगारी की त्रासदी से गुजर रहा हैए और बड़े आर्थिक संकट में फंस सकता है। यदि कर्जदाताओं की बात न मानते हुए यूरो जोन से बाहर आ जाए तो भी अन्य प्रकार के असमंजस में फंस सकता हैए जिसमें उसे वैश्विक समुदाय के सामने अपनी अर्थव्यवस्था को पुनरू जीवन देने के लिए आह्वान देना पड़ेगा। ग्रीस के कई अर्थशास्त्रियों का मानना है कि ग्रीस की जनता कटौतियों को अस्वीकार करते हुए अपना मत दे।
SOURCE : http://dainiktribuneonline.com/p
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