उनके हुनर की भी कीजिए कद्र
प्रधानमंत्री मोदी ने स्किल इंडिया के लांच के अवसर पर अन्य बातों के अलावा कहा कि आदमी को मल्टी स्किल आनी चाहिए। मल्टी टास्किंग कारपोरेट का बहुत ही प्यारा शब्द और मुहावरा हैए जो आजकल बात.बात पर सुनाई भी देता है। सरकारें भी अब ऐसी बातें कर रही हैं तो अच्छा है। आम जीवन में बड़े व्यापारियों से लेकर मामूली कामकाज करने वाले तक आज एक काम पर निर्भर नहीं रहना चाहते। अपने आसपास देखें तो आपको ऐसे उदाहरण हर जगह मिल जाएंगे। कल जो कपड़े प्रैस कर रहा थाए अचानक भुट्टे के मौसम में उसी के परिवार का कोई बाल.बच्चा भुट्टे का फड़ भी लगा लेता है। शाम तक बोरी भरकर भुट्टे बिक जाते हैं।
पुरानी कहावत है.बैठे से बेगार भली। कोई अखबार वाला अखबार मैगजीन तो बेचता ही हैए अपने यहां प्रापर्टी डीलिंग का बोर्ड लगा लेता है। यही नहीं ठंडे पेयए चाय बनाने का सामान और पान आदि की दुकान एक साथ चलाने लगता है। पूरा परिवार इस काम में जुटा रहता है। कायदे से तो किसी बड़े से बड़े बिजनेस स्कूल से ज्यादा ये मामूली लोग हमें बहुत कुछ सिखा सकते हैं। जिस तरह मुम्बई के डिब्बा वालों को अहमदाबाद आईआईएम में बुलाया गया थाए इन मामूली लोगों की अक्ल और अनुभव से भी बहुत कुछ सीखना चाहिए। इन्होंने किसी पाठशाला में इन बातों की शिक्षा नहीं लीए मगर दूसरों के अनुभव से सीखकर और देखकरए अपने काम में महारथ हासिल की है। और काम भी कौन साए जिसमें कम से कम लागत में इतनी आय की जा सके कि घर की जरूरतें पूरी हो सकें और कुछ कल के लिए बच भी जाए। घर के पास में बहुत से लड़के ऐसे भी दिखते हैं जो सवेरे ग्यारह बजे तक किसी मदर डेयरी के पास ब्रेडए दूधए अंडाए तरह.तरह के बिस्कुटए नमकीनए कुलचेए पापड़ीए भेलपूरी आदि का सामान बेचते हैं। फिर ग्यारह से एक तक आपके बिजलीए पानीए टेलीफोन आदि के बिल जमा कराने का काम करते हैं। ये इस काम से भी अच्छा.खासा पैसा कमा लेते हैं।यही नहींए अगर ध्यान से देखें तो इस कौशल में हमारे घरों की औरतों का कोई मुकाबला नहीं है। खासतौर से पिछली पीढ़ी या उससे पहली वाली पीढ़ी की औरतों का। चूंकि उनके घरेलू काम उन्हें पैसे नहीं दिलवाते थेए इसलिए उनके काम को घरेलू कहकर फर्श के नीचे खिसका दिया गया। उनके काम में कितनी मेहनत लगती हैए दिन के कितने घंटे लगते हैंए इससे घर की कुल कितनी बचत होती हैए इसे अकसर आंकने की कोई कोशिश भी नहीं की गई। उन्हें कभी कोई प्रशंसा भी नहीं मिली।
आखिर हमारी दादीए नानीए ताईए मांए बुआए चाची तथा घर के आसपास की अन्य औरतें क्या.क्या करती थींए क्या हमें याद है। उनकी दिनचर्या कैसी होती थी। एक नजर डालें। सवेरे.सवेरे उठकर वे घरों को बुहारती थींए धोती थीं। कच्चे घरों की लिपाई.पुताई का जिम्मा भी उन्हीं का था। जानवरों को दुहनाए उनका दाना.पानी भी वे ही करती थीं। फिर दही को मथनाए मक्खन निकालनाए नहानाए पूजा.पाठए घर के हर सदस्य की रुचि के अनुसार समय से पहले खाना पकानाए बर्तन मांजनाए दोपहर में चिप्सए पापड़ बड़ियां बनानाए मौसम के अनुसार अचार डालनाए शरबत बनानाए कपड़े सिलनाए स्वेटरए मोजेए पुराने स्वेटरों से नए स्वेटर बनानाए मफलरए शाल बुननाए कढ़ाई करनाए रजाइयां भरवाकर उनमें डोरे डालनाए पुराने कपड़ों से तरह.तरह की नई चीजें बनानाए किसी त्योहार पर सारी मिठाइयां और पकवान तैयार करना।
मगर ये सारे काम औरतों के कर्तव्यों की सूची में इस तरह से शामिल थे कि उन्हें कभी काम भी नहीं माना गया। घर के कुछ पुरुष तो इसमें अपनी शान समझते थे कि घर की औरतों ने जो भी काम किए हैंए वे उसमें खोट निकालें। जबकि आज इनमें से अधिकांश काम हम पैसे देकर कराते हैं। और अगर सीखने हों तो किसी इंस्टीट्यूट में मोटी फीस देकर सीखते हैं। जबकि हमारी ये औरतें ये सारे काम देखकर और अपने घर की औरतों से विरासत में सीखती थीं। इन औरतों के कामों को अगर गिनें तो इनसे ज्यादा मल्टी स्किल और मल्टी टास्किंग क्या होगी। सबसे बड़ी बात कि इनके समय में कोई तकनीकी सुविधा जैसे कि फ्रिजए कुकरए मिक्सीए गैसए माइक्रोवेवए कपड़े धोने की मशीनए घर की सफाई की मशीन आदि भी उपलब्ध नहीं थीं। जबकि आज की पीढ़ी की औरतों के पास ये सब साधन उपलब्ध हैं। फिर भी वे थकान और समय की कमी का रोना रोती हैं।
पिछली पीढ़ी की इन औरतों ने कितना अन्याय सहा हैए सिर्फ इसलिए कि वे आज की औरत की तरह चार पैसे नहीं कमाती थीं। लड़कियों की आत्मनिर्भरता ने पिछली पीढ़ी की औरतों की तमाम विद्याओं और कलाओं को पीछे धकेल दिया। ये कलाएं पीछे हुईं भी इसलिए कि इनके करने से इन औरतों के हाथ में चार पैसे नहीं आते थे।
SOURCE : http://dainiktribuneonline.com/
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