दहलीज के भीतर अपनों के दंश
हमारे समाज में चर्चित चेहरों के घरों से जब घरेलू हिंसा की ख़बरें आती हैं तो कितने ही सवाल एक साथ उठ खड़े होते हैं। दुनिया में हर इनसान को सम्मान के साथ जीने का हक है। ऐसे में यह अफसोसजनक ही है कि हमारे समाज में घर के बाहर तो महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान एक बड़ा सवाल है हीए दहलीज के भीतर भी हालात कुछ अच्छे नहीं हैं।
यूएन वर्ल्ड पापुलेशन फण्ड और इंटरनेश्नल सेंटर फॉर रिसर्च ऑन वुमैन की हालिया रिपोर्ट में सामने आये नतीजे शर्मसार करने वाले हैं। देश के सात राज्यों में किए गए इस सर्वे की रिपोर्ट बताती है कि आज भी 10 में से 6 मर्द अपनी पत्नी के साथ हिंसक व्यवहार करते हैं। यह हकीकत देश की आधी आबादी के हालातों की कड़वी सच्चाई को सामने लाने वाली तो ज़रूर है। इस रिपोर्ट में 60 फीसदी पुरुषों का ये स्वीकार करना कि वे अपनी पत्नी के साथ हिंसक बर्ताव करते हैंए दहलीज़ के भीतर होने वाले स्त्रियों के भावनात्मक और शारीरिक उत्पीड़न का खुलासा करने को काफी है।यूनाइटेड नेशन्स की एक रिपोर्ट के अनुसार भी भारत में दो.तिहाई महिलाएं हिंसा की शिकार हैं। इतना ही नहींए 2009 में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की एक रिपोर्ट के मुताबिक हमारे देश में 40 फीसदी महिलाएं रोज़ किसी न किसी बहाने पति की मारपीट का शिकार बनती हैं। कुछ समय पहले आई यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में 15 से 19 साल की 25 लाख शादीशुदा लड़कियां कभी न कभी यौन और भावनात्मक हिंसा का शिकार हुई हैं। यह ताज़ा रिपोर्ट भी यही बताती है कि बहुत कुछ बदल कर भी शायद कुछ नहीं बदला।
गौरतलब है कि इस रिपोर्ट में महिलाओं के साथ होने वाले हिंसात्मक व्यवहार को केवल मारपीट तक सीमित नहीं रखा गया है। इसमें हिंसा की चार श्रेणियां रखी गयी हैंए जिसमें भावनात्मक और शारीरिक हिंसा के साथ ही यौन हिंसा और आर्थिक परेशानियों को भी शामिल किया गया है। नेशनल क्राइम रेकॉर्ड्स ब्यूरो के ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक घरेलू हिंसा को लेकर 2003 में दर्ज मामलों की संख्या 50ए703 थी। यह 2013 में बढ़कर 118ए866 हो गई। दस सालों में इसमें 134 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है जो इस दौरान बढ़ी जनसंख्या से कहीं ज्यादा है। आम धारणा है कि जो महिलाएं कामकाजी हैं यानी कि आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर और शिक्षित हैंए वे घरेलू हिंसा का शिकार नहीं होतीं। भ्रम यह भी है कि अशिक्षित और निम्न वर्ग के तबके में महिला हिंसा के मामले ज्यादा होते हैं। जबकि हकीकत इससे बिल्कुल अलग है।
बेंगलुरु में 2005.06 में हुए एक सर्वे में यह बात सामने आ चुकी है कि नौकरी करने वाली लगभग 80 फीसदी महिलाओं को गृहिणियों की तुलना में पति की ज्यादतियों का ज्यादा शिकार होना पड़ता है। घरेलू हिंसा के खिलाफ़ अभियान से जुड़े लोगों का कहना है कि जिन इलाकों में महिलाएं शिक्षित हैंए मुखर हैंए वहां ज़्यादा मामले दर्ज होते हैं। हमारे यहां आज भी हर 3 में से 1 शादीशुदा महिला पति या उसके परिवारजनों की हिंसा की शिकार है। वैश्विक स्तर पर भी 30 प्रतिशत महिलाएं अपने नज़दीकी साथी द्वारा हिंसा और दुर्व्यवहार की शिकार होती हैं। हमारी आबादी का 48ण्5 फीसदी हिस्सा महिलाएं हैं। भारत में तकरीबन 31 प्रतिशत विवाहित महिलाएं किसी न किसी रूप में शारीरिक हिंसा झेलती हैं।
एक गैर सरकारी संस्था के मुताबिक भारत में लगभग पांच करोड़ महिलाओं को अपने ही घर में हिंसा का सामना करना पड़ता है। इनमें से केवल 0ण्1 प्रतिशत ही ऐसी हिंसा के खिलाफ मामला दर्ज करवाने के लिए आगे आती हैं द्य ज्यादातर महिलाएं पति के हिंसक व्यवहार के बारे में अपने दोस्तों और सहकर्मियों तक से चर्चा नहीं कर पातीं। कई मामलों में तो महिलाओं के मायके में भी इस बात की जानकारी नहीं होती। 2013 में आये नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि भारत में हर 5 मिनट में घरेलू हिंसा का 1 मामला दर्ज होता है। 2008 में घरेलू हिंसा के खिलाफ भारत में बेल बजाओ अभियान जारी करने वाली संस्था ब्रेकथ्रू से जुड़ी मल्लिका दत्त का मानना है कि आमतौर पर घरेलू हिंसा को व्यक्तिगत मुद्दा माना जाता है और लोग उस महिला की मदद करने आगे नहीं आते जो अपने पति की ज्यादतियों का शिकार होती हैं।
घर के हर सदस्य को भावनात्मक सहारा देने वाली महिलाएं क्यों अपने ही घर के भीतर हिंसात्मक व्यवहार झेलने को विवश हैंघ् ये एक विचारणीय विषय है। गृहिणियों के साथ ही नहींए कामकाजी महिलाओं के साथ भी होने वाले इस दुर्व्यवहार से साबित होता है कि सशक्त होने के लिए उनका आत्मनिर्भर बन जाना भर काफी नहीं है। जरूरत इस बात की है कि हमारी सामाजिक सोच में बदलाव आये।
SOURCE : http://dainiktribuneonline.com/
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