दबाव में ब्रिक्स
दक्षिणी रूस के ऊफा शहर में होने जा रहा ब्रिक्स शिखर सम्मेलन कुछ असाधारण परिस्थितियों के लिए याद किया जाएगा। अब से कोई दस साल पहले जब ब्राजीलए रूसए भारत और चीन को तेजी से उभरते विकासशील देशों के एक साझा खांचे में रख कर देखने का चलन शुरू हुआ थाए तब किसी को अंदाजा नहीं था कि इन अलग.अलग कूटनीतिक नजरियों वाले देशों के बीच अगर एकता का कोई स्वरूप बना तो वह कहां जाएगा।
आखिरकार मंदी ने न सिर्फ इन चार देशों को बल्कि पांचवें देश साउथ अफ्रीका को भी ब्रिक्स नाम के एक ताकतवर संगठन के तहत ला दिया। ऊफा में इनके साझा विकास बैंक का शुभारंभ होने जा रहा है और सब कुछ ठीक रहा तो यहीं ये डॉलरमुक्त आपसी व्यापार के लिए भी राजी हो सकते हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध के खात्मे के बाद से ही विश्व व्यापार पर कायम अमेरिकी मुद्रा के एकछत्र राज को यह दूसरी ;यूरो की स्थापना के बाद पहलीद्ध चुनौती मिलने जा रही है।
बहरहालए इस सकारात्मक पहल से थोड़ा ही हट कर देखें तो हमें ब्रिक्स के भीतर कुछ तनाव भी उभरते दिखाई पड़ेंगे। यह विरला मौका है कि ब्रिक्स के तीन ताकतवर साझीदार. रूसए चीन और ब्राजील अलग.अलग वजहों से अमेरिका के खिलाफ काफी सख्त तेवर अपनाए हुए हैं। रूस का अमेरिका विरोधी रुझान यूक्रेन में जारी गृहयुद्ध की वजह से बना हुआ हैए चीन का दक्षिणी चीन सागर में कुछ द्वीपों पर दावेदारी और नए कृत्रिम द्वीपों की निर्माण वजह सेए जबकि ब्राजील अपने शीर्ष नेताओं और अधिकारियों की लगातार जासूसी के चलते बुरी तरह अमेरिका से खार खाए हुए है।
जहां तक सवाल भारत के कूटनीतिक रुझान का है तो मोदी सरकार ने अपनी शुरुआत अमेरिका के प्रति थोड़े खिंचाव के साथ की थीए लेकिन अभी कुल मिलाकर भारत को अमेरिकी खेमे के इनसाइडर के तौर पर देखा जा रहा है। पश्चिम में इस्राइल से लेकर पूरब में जापान और दक्षिण कोरिया तक कट्टर अमेरिका समर्थक देशों के साथ न सिर्फ भारत की दोस्ती गहरा रही हैए बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का रवैया इसको ऐसे ही देशों की जमात का हिस्सा साबित कर रहा है।
ऐसे में ब्रिक्स के ऊफा शिखर सम्मेलन में दोस्ती और भाईचारे की कसमों और वादों की तो कोई कमी नहीं रहेगीए लेकिन अमेरिका के समर्थन और विरोध को लेकर शायद इसमें एक बारीक सी दरार भी दिखाई पड़ेगी। शीतयुद्ध के खात्मे के बाद दुनिया में उभरी जिस एकध्रुवीयता ने गुटनिरपेक्ष सम्मेलन जैसे वैश्विक मंचों का कबाड़ा कियाए उसका कुछ न कुछ असर देर.सबेर ब्रिक्स पर भी दिखना ही है।
भारत की कूटनीतिक परिपक्वता इसी से आंकी जाएगी कि अंतरराष्ट्रीय मंचों का उपयोग वह अपने राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाने में करे और जहां तक हो सकेए खुद को बाहरी गोलबंदियों से होने वाले नुकसान से बचाए रखे। आने वाले दिनों में कुछ मजबूत अर्थव्यवस्थाओं की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं। माहौल ज्यादा बिगड़ा तो ब्रिक्स भारत के लिए बड़े काम की चीज साबित होगा।
SOURCE : http://navbharattimes.indiatimes.com/
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