Sunday, 19 July 2015

राजस्व से ज्यादा जरूरी सेहत

राजस्व से ज्यादा जरूरी सेहत

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बीते दिनों यह ऐलान किया कि अगली बार वह सत्ता में आएंगे तो बिहार में शराबबंदी लागू कर देंगे। परए बड़ा सवाल ये है कि वे शराबबंदी के लिए दुबारा से सत्ता में आने का इंतजार क्यों कर रहे हैं। उन्हें विलंब करने की क्या जरूरत है। क्या उन्हें मालूम है कि हरियाणा में एक दौर में मुख्यमंत्री बंसीलाल ने शराबबंदी की कोशिश की थी घ् उसमें वे बुरी तरह से फेल हुए थे। बेहतर होगा कि नीतीश कुमार अपने शराबबंदी अभियान को तुरंत शुरू करें और उन कारणों पर चिंतन करेंए जिसके चलते हरियाणा में शराबबंदी की योजना फेल हो गई थी। नब्बे के शुरुआती सालों में बंसीलाल ने भी शराबबंदी की पहल की थी पर हरियाणा ने उनका साथ नहीं दिया। हालांकि बंसीलाल बेहद सख्त मुख्यमंत्री थे। उन्हें आधुनिक हरियाणा का शिखर नेता माना जाता है। पर वे नाकाम रहे थे।
पटना के एसके मेमोरियल हाल में महिलाओं की एक कार्यशाला में नीतीश कुमार ने शराबबंदी की दिशा में काम करने की बात कही। इस मौके पर उन्होंने कहा कि महिलाओं के उत्थान के बिना समाज का उत्थान संभव नहीं है। पर बात वही आ जाती है। चुनाव से पहले वादे करना आसान हैए उन्हें पूरा करना कठिन।
बेहतर तो ये होगा कि आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में सभी राजनीतिक दल अपने चुनावी घोषणापत्र में शराबबंदी को शामिल करते हुए इस पर प्राथमिकता के आधार पर अमल करें। माना जा सकता है कि शराबबंदी कार्यक्रम अभी केवल गुजरात और केरल में लागू हो पाया है। पर इसे अखिल भारतीय स्तर पर लागू करने की सख्त जरूरत है। जहां तक केरल की बात है तो वहां पर सरकार का उद्देश्य अगले दस सालों में शराब को पूरी तरह से प्रतिबंधित करना है। शुरुआत में सात सौ बार और शराब बेचने वाली कुछ दुकानें बंद की जाएंगी और हर महीने शराब.मुक्त दिनों की संख्या बढ़ाई जाएगी। केरल में प्रति व्यक्ति शराब की खपत आठ लीटर प्रति वर्ष है जो पूरे भारत में सबसे ज़्यादा है।
देश में शराब की खपत बढ़ती जा रही है। राजधानी दिल्ली के मिडिल क्लास आवासीय क्षेत्र मयूर विहार में शराब की 10 से ज्यादा दुकानें हैं। सबमें हमेशा भीड़ लगी रहती है। आखिऱ कैसे एक आवासीय इलाके में इतनी शराब की दुकानें खुलने दी गईं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसारए लगभग तीस फीसदी भारतीय अल्कोहल का सेवन करते हैं। इनमें चार से 13 फीसदी लोग तो नियमित रूप से शराब का सेवन करते हैं। मुंहए लीवर और स्तन समेत कैंसर की कई किस्मों का संबंध शराब के सेवन से है। आश्चर्य की बात यह है कि इन आंकड़ों के बावजूद सरकारें इस गंभीर मामले पर कोई ध्यान नहीं दे रही हैं। शराब का सेवन दिलए दिमागए लीवर और किडनी की 200 से भी ज्यादा बीमारियों को न्योता देता है। कई मामलों में यह कैंसर का भी प्रमुख कारण बन जाता है।
कम उम्र के किशोरों में शराब पीने की बढ़ती प्रवृत्ति का उनके भविष्य और रोजगार पर सीधा असर पड़ता है। शराब पीकर काम पर आने वाले कर्मचारियों की वजह से उत्पादकता का जो नुकसान होता हैए उससे भारत जैसे विकासशील देश को सालाना उत्पादन में लगभग एक फीसदी नुकसान होता है। यह एक मोटा अनुमान है।
शराब की बिक्री से मिलने वाले भारी राजस्व ने ही सरकार के कदमों में बेड़ियां डाल रखी हैं। राजस्व को ध्यान में रख कर ही पूर्वोत्तर राज्य मिजोरम ने 18 वर्षों से जारी शराबबंदी खत्म कर दी है। महज राजस्व के लिए देश के भविष्य से खिलवाड़ नहीं किया जा सकता। नई नीति बनाने से पहले नफा.नुकसान का हिसाब होना चाहिए। सरकार एक निश्चित उम्र से पहले किसी के शराब पीने को कानूनी जुर्म बना कर इस समस्या पर काफी हद तक अंकुश लगा सकती है।
बहरहालए शराब का बढ़ता सेवन गंभीर रूप ले रहा है। इसके साथ जहरीली शराब के सौदागरों पर कड़ी कार्रवाई करने की जरूरत है। जहरीली शराब पीने से हर साल सैकड़ों लोग मर जाते हैं। अब बिहार में ही नहींए सारे देश में शराबबंदी की दिशा में कदम उठाए जाने की जरूरत है।
SOURCE : http://dainiktribuneonline.com/

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