Sunday, 5 July 2015

समझौते की कोई गुंजाइश नहीं

समझौते की कोई गुंजाइश नहीं

आखिर सुप्रीम कोर्ट ने कड़े शब्दों में वह संदेश दे दिया जिसकी सख्त जरूरत थी। बुधवार को अपने एक अहम फैसले में कोर्ट ने साफ.साफ कहा कि रेप के मामलों में किसी भी सूरत में समझौते या मध्यस्थता की कोई बात सोची भी नहीं जा सकती। शीर्ष अदालत ने ठीक ही रेखांकित किया कि रेप जैसे मामलों में आरोपी द्वारा पीड़िता से शादी करने का प्रस्ताव रखना एक तरह से दबाव डालने की कोशिश है और अदालतों को ऐसे प्रयासों से बिल्कुल दूर रहना चाहिए।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से कुछ ही दिन पहले मद्रास हाईकोर्ट ने नाबालिग से रेप के एक मामले को मध्यस्थता के लिए भेज दिया और आरोपी को जमानत दे दी। दिलचस्प बात है कि हाईकोर्ट ने पीड़िता की तकलीफों के मद्देनजर यह फैसला दिया था जिसके माता.पिता गुजर चुके हैं और जो रेप के बाद पैदा हुए एक बच्चे की अविवाहिता मां हैए मगर बावजूद इसकेए पीड़िता ने मध्यस्थता के प्रयासों में शामिल होने से इनकार कर दिया। मध्यप्रदेश के जिस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनायाए उसमें भी आरोपी ने सात वर्षीया पीड़िता के माता.पिता के साथ समझौते की पेशकश की थी जिसे ठुकराते हुए निचली अदालत ने उसे पांच साल जेल की सजा सुनाई थी। लेकिन हाईकोर्ट ने इसे छेड़छाड़ का केस मानते हुए सजा की अवधि इतनी कम कर दी जितनी कि वह पहले ही जेल में गुजार चुका था।

अदालतों का ऐसा रुख इन्हीं दोनों मामलों तक सीमित नहीं है। दिसंबर 2012 के दिल्ली गैंगरेप की घटना के बाद समाज में जो जागरूकता महिला अधिकारों को लेकर आई हैए उसका बहुत ज्यादा प्रभाव अदालती प्रक्रियाओं और कोर्ट के फैसलों पर नहीं दिखता। समय.समय पर ऐसे फैसले और ऐसे कॉमेंट आते रहते हैं जो न्यायपालिका की गरिमा के अनुरूप नहीं कहे जा सकते। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट की यह बात खास तौर पर ध्यान देने लायक है कि रेप के मामलों में मध्यस्थता की सिफारिश करने वाला रुख महिलाओं के सम्मान के प्रति संवेदनशीलता की कमी को दर्शाता है।

इसी संदर्भ में पिछले कुछ समय से रेप की शिकायतों में हुई अप्रत्याशित बढ़ोतरी के मसले को भी रखा जा सकता है। इस बढ़ोतरी के पीछे हालांकि महिलाओं की बढ़ी हुई हिम्मत और पुलिस की कम हुई आनाकानी की भी भूमिका रही हैए लेकिन इसके बावजूद यह मुद्दा कई मंचों से उठाया जाता है कि रेप या रेप के प्रयासों की झूठी शिकायतें पहले के मुकाबले ज्यादा आने लगी हैं। सुप्रीम कोर्ट का ताजा आदेश इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण कहा जाएगा है। वजह यह है कि अगर कोई झूठी शिकायत आती है तो अमूमन उसके पीछे मकसद किसी तरह का फायदा उठाना ही होता है। ऐसे में समझौते की संभावना खत्म करके सर्वोच्च अदालत ने झूठी शिकायतों के लिए भी गुंजाइश कम कर दी है।
SOURCE : http://navbharattimes.indiatimes.com/other/opinion/editorial/articlelist/2007740431.cms

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