Wednesday, 1 July 2015

मुश्किलें भी हैं डाकघर की बैंकिंग में

मुश्किलें भी हैं डाकघर की बैंकिंग में

केंद्रीय दूरसंचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा है कि रिजर्व बैंक प्रस्तावित पोस्ट बैंक ऑफ इंडिया ;पीबीआईद्ध को भुगतान बैंक का लाइसेंस अगस्त तक दे सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि विगत एक साल में डाक विभाग ने 27215 डाकघरों को नेटवर्क के जरिये आपस में जोड़ा है। प्रस्तावित पीबीआई के विस्तार के लिये सुझाए गये हाइब्रिड मॉडल को अपनाने की मंजूरी सरकार ने दी है। इसके तहत मौजूदा डाककर्मी 600 प्रस्तावित पीबीआई की शाखाओं का संचालन करेंगे। इस क्रम में पीबीआई सबसे पहले सूचना एवं प्रौद्योगिकी तंत्र को मजबूत करना चाहता हैए ताकि वह मौजूदा बैंकों से मजबूती के साथ प्रतिस्पर्धा कर सके।
लाइसेंस मिलने के बाद पीबीआई महानगरों और राज्यों की राजधानियों में अपनी शाखाएं खोलेगा। चार सालों के अंदर इसका विस्तार जिला मुख्यालयों तक किया जायेगा। पीबीआई के लिए सरकार डाक विभाग का निगमीकरण करेगी। प्रस्तावित ढांचे के तहत विभाग को पांच स्वतंत्र होल्डिंग कंपनियों में विभाजित किया जाएगाए जिसके तहत बैंकिंग और बीमा खंडों के लिए इकाइयां स्थापित की जाएंगी।
पूर्व में 500 करोड़ रुपए की न्यूनतम पूंजी अहर्ता प्राप्त करने के लिए सरकार के समक्ष इस संबंध में एक कैबिनेट नोट पेश किया गया था। पहले पीबीआई 50 शाखाओं के साथ बैंकिंग कारोबार शुरू करना चाहता था। उसने नये बैंक खोलने से जुड़ी शर्तों से जुड़ी औपचारिकताओं को पूरा भी कर लिया था। पीबीआई की इस मद में 4700 करोड़ रुपए खर्च करने की योजना थी। विभाग ने आधुनिकीकरण और बैंकिंग सेवा के लिए इन्फोसिसए टीसीएसए सिफीए रिलायंस आदि कंपनियों के साथ करारनामा किया था। वित्तीय प्रणाली में सुधार ;एफएसआईद्ध की जिम्मेदारी इन्फोसिस को दी गई थी। कोर सिस्टम इंटीग्रेटर ;सीएसआईद्ध का काम टीसीएसए डाटा सेंटर का काम रिलायंस और नेटवर्क का काम सिफी को सौंपा गया था।
पीबीआई की योजना राजस्थानए आंध्रप्रदेशए तमिलनाडुए महाराष्ट्रए असमए दिल्ली आदि राज्यों में 100 एटीएम खोलने की भी थी। पीबीआई इंटरनेटए मोबाइलए डिजिटल बैंकिंग और एसएमएस जैसी सुविधाएं ग्राहकों को मुहैया कराना चाहता है। वित्त वर्ष 2015.16 तक कोर बैंकिंग और वर्ष 2018 तक इसकी सभी शाखाओं में एटीएम की सुविधा देने की भी योजना है।
आजादी के वक्त डाकघरों की संख्या 23344 थीए जो 31 मार्चए 2009 तक बढ़कर 155015 हो गईए जो सभी वाणिज्यिक बैंकों की शाखाओं से लगभग दोगुना थी। उल्लेखनीय है कि इनमें से 89ण्76 प्रतिशत यानी 139144 शाखाएं ग्रामीण इलाकों में थीं। सुदूर ग्रामीण इलाकों में डाकघरों की गहरी पैठ है। अमूमन डाकघर का कार्य घर से संचालित किया जाता है। ऐसे व्यावहारिक स्वरूप के कारण ही 31 मार्चए 2007 तक डाकघरों में कुल 323781 करोड़ रुपये जमा किये गये थेए जो दिसंबरए 2014 में बढ़कर 6 लाख करोड़ से अधिक हो गये थे।
मौजूदा समय में ग्रामीण इलाकों में पर्याप्त संख्या में बैंकों की शाखाएं नहीं हैं। कुल ग्रामीण आबादी के एक बड़े हिस्से के पास बैंक खाते नहीं हैं। बीपीएल वर्ग में सिर्फ 18 प्रतिशत के पास ही बैंक खाता है। फिलवक्तए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की कुल शाखाओं का 40 प्रतिशत ग्रामीण इलाकों में है। यूरोपीय देशों में डिपार्टमेंट आफ पोस्ट के द्वारा ष्पोस्टल गिरोष् जैसी योजना के माध्यम से नागरिकों को बैंकिंग सुविधा मुहैया कराई जा रही है। इस योजना के तहत यूरोपवासियों को मनीआर्डर के साथ.साथ भुगतान की सुविधा भी घर पर दी जाती है। भारत में भी ऐसा किया जा सकता है।
बैंक के माध्यम से जमा और निकासी करना बैंकिंग कार्यवाही का सिर्फ एक पक्ष है। आज प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरणए बीपीएल वर्ग को ऋण सुविधा आदि भी सरकारी बैंकों के माध्यम से उपलब्ध कराई जा रही है। विगत सालों में केवाईसी के अनुपालन में लापरवाही बरतने के कारण बैंकों में धोखाधड़ी की घटनाएं बढ़ी हैं। ऐसे वारदातों के पीबीआई में भी होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
स्पष्ट है कि सकारात्मक संभावनाओं के साथ पीबीआई के समक्ष तकनीकीए वित्तीय समावेशन एवं आर्थिक स्तर पर अनेक चुनौतियां हैंए जिसे एक समय.सीमा के अंदर पीबीआई को दूर करना होगाए अन्यथा यह दूसरे बैंकों से पिछड़ सकता है।
सवाल उठना लाजिमी है कि क्या डाकघरों को बुनियादी सुविधाओं से लैस किये बिना प्रस्तावित पीबीआई को शुरू करना व्यावहारिक कदम हैघ् व्यावहारिकता पर सवाल उठना इसलिए भी प्रासंगिक हैए क्योंकि देश के सुदूर ग्रामीण इलाकों में अनेक डाकघर घाटे में चल रहे हैं और इस मुद्दे पर सरकार का रुख अभी भी स्पष्ट नहीं है।
कहा जा सकता है कि प्रस्तावित पीबीआई तमाम कमियों व खामियों के बाद भी सरकार एवं आम आदमी की उम्मीदों पर खरा उतर सकता हैए लेकिन इसके लिये सरकार को इसकी तमाम चुनौतियों को दूर करना होगा। डाकघर के कर्मचारियों को भी इस दिशा में सकारात्मक भूमिका निभानी होगी।
SOURCE : http://dainiktribuneonline.com/2015/06/

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