आत्मघाती वैज्ञानिक तरक्की
कौन ले जा रहा है मनुष्य कोध् सामूहिक आत्मघात की दिशा में बिला झिझकघ्ध् सभ्यता को ध्वंसावशेषों के हवालेध्करना चाहता है कौनघ्ध् विज्ञान के विनाशकारी उपयोग का सपनाध्देखने वाला कौन है सत्ताओं के सिवाध्इस दुनिया मेंघ्
हिन्दी कविता में युयुत्सावाद के जनक शलभ श्रीराम सिंह ने 1991 में अपनी एक कविता में यह ज्वलंत प्रश्न पूछा थाए जो अभी तक अनुत्तरित चला आ रहा है। और इस खबर के बाद नये सिरे से प्रासंगिक हो उठा है कि जर्मनी में फैंकफर्ट से सौ किलोमीटर दूर बाउनाताल स्थित एक कार निर्माता कम्पनी के संयंत्र के रोबोट ने एक इक्कीस वर्षीय ठेका मजदूर की हत्या कर दी। रोबोट ने ऐसा तब किया जब मजदूर उसे कार के कलपुर्जे जोड़ने के उसके काम पर तैनात करने हेतु उसके सुरक्षा घेरे में घुस गया था। घेरे के बाहर उपस्थित उसके साथी मजदूर की मानें तो रोबोट ने पहले तो उसे कसकर पकड़ाए फिर उठाकर ऐसा पटका कि उसकी छाती की सारी हड्डियां चकनाचूर हो गयीं। डाक्टरों के लिए उसे बचा पाना असंभव हो गया।योंए अमेरिका में पिछले तीन दशकों में रोबोटों से जुड़ी दुर्घटनाओं में तैंतीस से ज्यादा लोग अपनी जानें गंवा चुके हैंए लेकिन किसी रोबोट द्वारा इस तरह हत्या पर उतरने का यह अपनी तरह का पहला मामला है। यानी अब तक हम जिन रोबोटों को फिल्मोंए उपन्यासों अथवा विज्ञान कथाओं व नाटकों आदि में किसी की जान लेते या मनुष्य जाति के विनाश पर उतरते देखध्पढ़कर सिहरते रहेए अब वे हमारे समय के महाभयानक सच में बदल गये हैं।
जर्मनी में अधिकारी समझ नहीं पा रहे कि वे रोबोट द्वारा अंजाम दी गयी मजदूर की हत्या के लिए किस पर और कैसे मुकदमा चलायेंघ् लेकिन हमारे लिए ज्यादा प्रासंगिक सवाल यह है कि हम उस घटना द्वारा बजायी गयी खतरे की घंटी से कोई सबक सीखेंगे या इसके लिए अगली पीढ़ी के उन रोबोटों के अस्तित्व में आने का इंतजार करेंगे जो सुरक्षा घेरों से बाहर घूमने.फिरने को भी ष्आजादष् होंगे और वर्तमान रोबोटों से ज्यादा कहर बरपा सकेंगेघ् लेकिन क्या तब तक बहुत देर नहीं हो जायेगीघ्
अफसोस की बात है कि हमें ऐसी घंटियों की अनसुनी की बहुत बुरी आदत है। महात्मा गांधी तो अंधाधंुध मशीनीकरण कोए रोबोट जिसकी चरम परिणति से जनमे अतिमानवों से ज्यादा कुछ नहीं हैए मानव सभ्यता के लिए अभिशाप बताते ही थे। प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी स्टीफन हाकिंग ने तो साफ.साफ चेता रखा है कि रोबोट धरती से जीवन के खत्म होने की प्रक्रिया की शुरुआत होंगे। टेक्सला इलेक्ट्रानिक कार के जनक इलोन मस्क ने कहा है कि उनका निर्माण दानवों को निमंत्रण देने जैसा होगा। लेकिन वर्तमान दुनिया का राजनीति व पूंजी द्वारा नियंत्रित जो जटिल स्वरूप हैए उसमें सिर्फ वैज्ञानिकों के ध्यान देने से कुछ होने वाला नहीं क्योंकि उनके हाथ में कोई निर्णायक शक्ति है ही नहीं और सत्ताएं इस ओर से पूरी तरह लापरवाह हैं।
हममें से जो लोग विज्ञान के अनेक अभिशापों के लिए वैज्ञानिकों को जिम्मेदार ठहराकर उन पर अपना गुस्सा उतारते रहते हैंए उन्हें समझने की जरूरत है कि वैज्ञानिकों को तमाम कल्याणकारी व सृजनात्मक शोधों से विरतकर औजारों तक को हथियारों में बदलने के काम में इन सत्ताओं ने ही लगा रखा है। कौन कह सकता है कि वैज्ञानिकों ने जिस अणु ऊर्जा की खोज कीए उसे अणु या कि परमाणु बम में बदलकर दुनिया को बारूद के ढेर पर बैठानेए सामूहिक विनाश के रासायनिक हथियारों के उत्पादन तक ले जानेए पर्यावरण को तमाम जहरीली गैसों के हवाले करने और प्लास्टिक के कचरे से पाट देने जैसे कृत्यों के पीछे भी स्वार्थी सत्ताएं ही नहीं हैंघ्
लेकिन वैज्ञानिकों का प्रतिरोध उनके एजेंडे पर कहीं दिखायी देता। वे तो यह बताने के लिए भी आगे नहीं आते कि उनके ष्गुड सर्वेंटष् को ष्बैड मास्टरष् उन्होंने नहींए पूंजी को ब्रह्मए मुनाफे को मोक्ष और वर्चस्व को सबसे बड़ा पराक्रम मानने वाली इन सत्ताओं ने ही बनाया है। हांए वैज्ञानिकों को इस सवाल का जवाब भी देना ही चाहिए कि क्या उनकी कोई सामाजिकए सांस्कृतिक या नैतिक जिम्मेदारी नहीं हैघ् क्या समूची मनुष्यता खतरे में पड़ेगी तो वे खुद के लिए किसी अभयारण्य की कल्पना कर सकते हैंए जिसमें वे जा छिपेंगेघ्
जाहिर है कि मनुष्य विरोधी सत्ताओं के रहते वैज्ञानिक आविष्कारों के दुरुपयोग के खात्मे को लेकर आश्वस्त नहीं हुआ जा सकता। बन्दर के हाथ में उस्तरे की कहावत को सार्थक करके वे इस पुरान मिथ को भी तोड़ सकती हैंए जिसमें कहा जाता है कि अज्ञान ही सारे दुखों का मूल है। ऐसा हुआ तो एक कवि के शब्दों मेंरू पृथ्वी हिलेगी नहीं इस बारध् धधकेगी भी नहींध्डूब जायेगी अपने ही पानी में अकस्मात।ध्३ण्मनुष्य के विषय में कुछ भी न सोचती हुई ध्डूबी रहेगी अपने ही पानी में बहुत दिनों तक!
SOURCE : http://dainiktribuneonline.com/
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