राधा के बारे में ये बात कम ही लोगों को पता है
राधा का नाम भगवान श्रीकृष्ण से अलग नहीं किया जा सकता है। इसलिए कहते हैं जहां राधा नहीं है वहां कृष्ण हो नहीं सकते, लेेकिन भगवान कृष्ण से संबंधित प्राचीन प्रमाणिक साहित्य में राधा का नाम ही नहीं है। महाभारत और श्रीमद् भागवत जो कि श्रीकृष्ण भक्ति के आधार ग्रंथ माने गए हैं में राधा नहीं है। भागवत में श्रीकृष्ण की गोपियों के नामों मे एक नाम अनुराधा जरूर आता है, लेकिन राधा यहां भी गायब है। विद्वानों की मन्यता है राधा का नाम कृष्ण से जयदेव के गीत गोविंद की रचना के बाद जुड़ा और फिर अभिन्न हो गया।
यह भी बताया जाता है कि कृष्ण के जीवन में राधा थी ही नहीं। वही गीत गोविंद के बाद ही चर्चा में आई और देखते ही देखते प्रथम पूज्य हो गई। राधा का नामकरण सांख्य दर्शन के आधार पर हुआ, माना जाता है। जिसका अर्थ धारा से लिया गया है। जल की धारा वह होती है। जो मूल पात्र से अलग हो जाती है। भगवान के मूल तत्व से अलग लोग धारा है और जो मूल की ओर लौट जाएं वे राधा हो जाते हैं। इस अर्थ में राधा वह है जो अपनी यात्रा भगवान की ओर करती है। इस अर्थ में राधा भगवान के उतना ही निकट है जितनी की अभिन्न भक्तों की दृष्टि और भाव में है।
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