२० मार्च “ विश्व गौरैया दिवस “ आज हे... कानपूर शहर के इन बच्चों को गौरैया बचाओ अभियान के बारे में पता चला और इन्होने इस पंछी के प्रति बहुत जिम्मेदारी निभाते हुए स्वयं तो इसकी मदत करने की ठानी ही बल्कि आस पास के लोगों के पास जाकर प्रत्येक बच्चे ने १० से अधिक घोसले लोगो के सहयोग से अपनी लोकेलिटी में लगवा कर गौरैया की मदत करने का संकल्प दिलाया. इस दौरान इन बच्चों को कई तरह की नकारात्मक बातों का सामना करना पड़ा... जैसे, अरे मेरे घर में घोसला लगेगा तो चिड़िया गंदिगी बहुत फैलाएगी... अरे वो दिन भर शोर मचाएंगी... , ये चिड़िया के चक्कर में क्यों पड़े हो पढाई पर ध्यान दो.. किन्तु इन बच्चो को ये पता था की वो जो कुछ इस पंछी के लिए कर रहे हैं वो वक़्त की जरूरत हे. अपने प्रयासों से इन्होने लकड़ी के गौरैया के घरौंदों ( sparrow shelters ) को लोगों तक पहुचाया और इन्हें १० फीट से अधिक ऊंचाई पर सुरक्चित तंग्वाने में मदत की . साथ ही सुरछित ऊंचाई पर दाना पानी रखने को बताया ताकि बिल्लियाँ घात न लगा सकें. दिसंबर में लगवाए गए अधिकतर घरौंदों में आज गौरैया अपने घोसले बना चुकी हे.
हेमंत विहार, बर्रा १ में रहने वाली स्रष्टि कटियार १४ वर्ष की है और करम देवी मेमोरियल में दसवीं क्लास में पड़ती हैं, इन्होने अपने मित्रो आरती और मानसी की टीम बना कर २५ जोड़े गौरैयों को सुरचित स्थान रहने को उपलब्ध कराया. इन्होने कहा की गौरैया पंछी एक मात्र ऐसा पंछी हे जिसे घरेलु चिड़िया कहा जाता है. क्योंकि यह शुरुवात से ही इंसानों के साथ उनके घरों में अपने घोसले बनती आई हे. अनाज, रोटी , चावल, , काकुन आदि उसी हमारे कारण मिल जाता था. इसीकारण यह पुरे देश देश में हर जगह सकदों के झुण्ड में पाई जाती थी. हमारी सुबह इसकी चहचहाहट के साथ शुरू होकर इसकी चहचाहट के साथ शाम ख़त्म होती थी. पर आज यह प्रदुषण , पेड़ों और छुपने वाली झाड़ियो में कमी , हमारे आवासों के निर्माण के तरीको में आये बदलाव जैसे दीवालो में सूराखो का न होना, छप्परो का प्रोग ख़त्म होना.. और मोबाइल टावर रेडिएशन के कारण ९०% से अधिक ख़त्म हो चुकी है. हम सभी को यह बहुत प्यारी थी और इसे हम पर बहुत भरोसा था. पर हमने भी इसकी जरूरतों पर ध्यान देना बंद कर दिया. हमारे घर घरेलू चिड़िया के घर हुआ करते थे किन्तु हमने उनसे वही छीन लिया. अब उसकी जरा से गंदिगी जैसे तिनके आदि भी हम अपने घरों की टाइल्स , संगमरमर पर गिरना बर्दास्त नही कर पाते और इस बेचारे पंछी को घोसला लगाने से रोक देते हैं. जिसके कारण इसे घर से अलग किसी असुराच्चित जगह पर घोसला बनाना पड़ता हे . हर चार माह में ३-५ अंडे देने के बावजूद सालाना इनकी आबादी ५% - १५% की रफ़्तार से गिर रही हे जबकि अगर हम इनकी सुरछा करने लगें तो इनकी आबादी ३ गुना कम से कम एक वर्ष के भीतर ही बड सकती हे.. मार्च और अप्रैल में ये पंछी सर्वाधिक घोसले बनता हे. हमें गौरिया को अपने मन में वापस जगह देनी होगी.. बाकी समस्यां तो फिर अपने आप समाप्त हो जाएँगी...
बर्रा २ में रहने वाले अर्पण कान्यकुब्ज ११ वर्ष के हैं और PSVN स्कूल की छठी क्लास में पड़ते हैं इन्होने बताया की दुर्गा देवी रोड , जवाहर नगर में रहने वाली आनंदिता सिंह ११ वर्ष की है और महाराणा प्रताप में छठी क्लास में पड़ती हैं, इन्होने बताया की .... गौरैया के छोटे बच्चे अक्क्सर कौवों के शिकार बनते हैं. चुकी अब गौरैयों को अक्सर मजबूरी में हमारे घरो से दूर या घरों में ऐसी जगह पर घोसले बनाने पड़ते हैं जो आसानी से कौवों की पहुच में होते हैं. चुकी गौरैया के छोटे बच्चे घोसलों में या पहली दूसरी बार घोसला छोड़ते वक़्त बहुत शोर करते हैं जिससे की कौवों और अन्य परभछियों का ध्यान इन पर जाता हे. कौवे या बाज़ आसन पहुच वाले इन घोसले में जाकर या उड़ान के वक़्त मौका पाकर इन बच्चों को आसानी से मार देते हैं.
अवधपुरी में रहने वाले शौर्य त्रिवेदी १२ वर्ष के है और प्रभात पब्लिक काकादेव में सातवी क्लास में पड़ते हैं, इन्होने बताया की .... हम खुद या कारपेंटर की मदत से ऐसे सुरस्चित घर बनवा सकते हैं जिनपर कौवे और बिल्लियाँ आदि बेअसर हो . ध्यान देने की बात यह हैं के ऐसे घर में गौरैया के अन्दर जाने का रास्ता या व्यास १.५ इंच या पौने दो इंच से ज्यादा न हो. घरौंदे की लम्बाई और चौड़ाई ६ * ६ इंच व ऊंचाई ८ इंच रक्खी जा सकती हे. चिड़िया के घोसले में अन्दर जाने वाला गोल सुराख़ तले से ५ इंच ऊपर रखा जाना चाहिए . छोटे सुराख़ के कारण कोई अन्य परभछी उसके अन्दर नही जा सकेगा. इस घरौंदे को छज्जे या बालकनी के नीचे पंखे हे बहुत दूर लगाना चाहिए ताकि बारिश और धूप के प्रभाव से घरौंदे को बचाया जा सके . इस प्रकार हम प्रत्येक वर्ष गौरैया के १०-१५ नवजात बच्चो को बेवजह, समय से पहले मरने से बचा सकेंगे. जाजमऊ में रहने वाले हम्माद ११ वर्ष के है और वीरेन्द्र स्वरुप कैंट में छठी क्लास में पड़ते हैं, इन्होने बताया की ....
पेड़ पौधों की अनावश्यक कटाई और अज्ञानतापूर्ण बेवजह छटाई से छोटी चिड़ियों के छिपने के स्थान नही बचते हैं जिसके कारण वो और उनके बच्चे आसानी से कौवे बिल्लियों आदि के शिकार बन जाते हैं. क्योंकि ये चिड़ियाँ बहुत छोटी और डरपोक किस्म की होती हैं इसीलिए इन्हें बोगन बलिया, कनेर, नीबू, मौसम्मी, सहतूत , बेर , मालती की बेल जैसे झाड छुपने में मदत करते हैं . इन जैसी छोटी चिड़ियों की मदत करने के लिए इस प्रकार के पेड़ों को हमें जहा संभव हो वह लगाना और पलना पोसना चाहिए ताकि इन्हें भोजन, प्राण वायु और सुरछा मिल सके, ताकि इनकी संक्या में वृधि हो सके..
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